Monday, May 16, 2011

येहूदा आमिखाई : हार मानने की कविताएँ


येहूदा आमिखाई की कविताओं के क्रम में आज उनकी यह कविता... 









हार मानने की कविताएँ  :  येहूदा आमिखाई 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं हार मानता हूँ.
मेरे बेटे ने मेरे पिता की आँखें पाई हैं,
मेरी माँ के हाथ, 
और मेरा मुंह.
मेरी कोई जरूरत नहीं.
शुक्रिया.

रेफ्रीजरेटर गुनगुनाने लगा है,
तैयार है एक लम्बे सफ़र के लिए.
किसी और की मौत पर रोता है एक अजनबी कुत्ता.
मैं हार मानता हूँ. 

बहुत से कोषों का पैसा भरा है मैनें.
जरूरत से ज्यादा का बीमा है मेरा.
मैं सबके साथ बंधा और उलझा हूँ.
मेरी ज़िंदगी का हर बदलाव उन्हें बहुत महंगा पड़ेगा.
मेरी हर हरकत उन्हें नुकसान पहुंचाएगी,
उनका नामोनिशान मिटा देगी मेरी मौत. 
और मेरी आवाज़ बादलों के साथ गुजर रही है.
कागज़ में बदल गया है मेरा फैला हुआ हाथ : एक और इकरारनामा. 
मैं दुनिया को पीले गुलाबों में से देखता हूँ --
जिन्हें कोई भूल गया था 
खिड़की के पास की मेरी मेज पर. 

दिवाला !
पूरी दुनिया को 
मैं एक गर्भाशय घोषित करता हूँ.
अभी इस पल से मैं खुद को खाली करता हूँ 
और इसके भीतर जमा कर देता हूँ खुद को :
इसे मुझे अपनाने दो. मेरी फ़िक्र करने दो इसे !
अमेरिका के राष्ट्रपति को मैं अपना पिता घोषित करता हूँ,
और सोवियत संघ के राष्ट्रपति को अपनी संपत्ति का ट्रस्टी, 
ब्रिटिश कैबिनेट मेरा परिवार है, और 
माओ त्से तुंग मेरी दादी.
ये सभी जरूर मेरी मदद करेंगे !
मैं हार मानता हूँ.
मैं आसमान को ईश्वर घोषित करता हूँ. 
इन सभी को मिलकर मेरे लिए वह करने दो 
जो मुझे नहीं लगता था कि वे करेंगे. 
                        :: :: :: 

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