माइआ अंजालो की एक और कविता...
(अनुवाद : मनोज पटेल)
किसी ख़ास शख्स को ताज्जुब होता था कि
मेरे जैसी लम्बी-चौड़ी और मजबूत इरादों वाली लड़की
सामान्य वेतन वाली
कोई नौकरी क्यों नहीं करती.
थोड़ा वक़्त लिया मैनें उसे समझाने में
और हर पृष्ठ पढ़कर उसे सुनाने में.
न्यूनतम लोग भी
न्यूनतम वेतन पर गुजारा नहीं कर सकते.
किसी ख़ास शख्स को ताज्जुब होता था कि
क्यों मैं पूरे हफ्ते तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ.
मेरे पास लफ्ज़ नहीं थे
तफसील से सिर्फ यह बयान करने के लिए भी कि तुम क्या करते हो.
मैनें कहा कि समुद्र की गति है
तुम्हारी चाल में,
और जब तुम बूझते हो मेरी पहेलियाँ
तुम्हें मुंह से कुछ बोलना तक नहीं पड़ता.
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