फदील अल-अज्जवी की दो कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता...
अपने खाली समय में : फदील अल-अज्ज़वी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अपने लम्बे और उबाऊ खाली समय के दौरान
मैं पृथ्वी के गोले से खेलने बैठ जाता हूँ.
मैं कुछ मुल्क बनाता हूँ बगैर पुलिस या किसी गुट के
और कुछ को निकाल देता हूँ जो अब उपभोक्ताओं को आकर्षित नहीं करते.
बंजर रेगिस्तानों से मैं गुजार देता हूँ कल-कल बहती नदियाँ
और बनाता हूँ कुछ महाद्वीप और समुद्र
जिसे बचा कर रख लेता हूँ भविष्य के लिए कि क्या पता.
मैं मुल्कों का एक नया रंग-बिरंगा नक्शा बनाता हूँ :
जर्मनी को लुढ़का देता हूँ व्हेलों से भरे प्रशांत महासागर में
और कुहरे में उसके किनारों पर
गरीब शरणार्थियों को करने देता हूँ यात्रा
अवैध जहाज़ों पर
सपना देखते हुए बावरिया में वादा किए गए बागों का.
इग्लैंड को बदल देता हूँ अफगानिस्तान से
ताकि उसके नौजवान मुफ्त में पी सकें हशीश
हर मैजेस्टी की सरकार के सौजन्य से उपलब्ध कराई गई.
बाड़ लगी और बारूदी सुरंगें बिछी सरहदों से, कुवैत को
मैं चुपके से पहुंचा देता हूँ
ग्रहण के चंद्रमा के द्वीप समूह कोमोरो तक
उसके तेल के भण्डार समेत.
साथ-साथ, नगाड़ों की ऊंची आवाज़ के बीच
मैं बग़दाद को उठा ले जाता हूँ
ताहिती द्वीपों तक.
सऊदी अरब को मैं दुबका बैठा रहने देता हूँ अपने अंतहीन रेगिस्तान में
उसके अच्छी नस्ल के ऊंटों की शुद्धता को सुरक्षित रखने के लिए.
फिर मैं इंडियंस को वापस सौंप देता हूँ अमेरिका
इतिहास को वह इंसाफ देने के लिए
जिससे वह बहुत दिनों से वंचित था.
मुझे पता है कि दुनिया बदलना इतना आसान नहीं
मगर फिर भी यह जरूरी है बहुत-बहुत.
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'' मुझे पता है कि दुनिया बदलना इतना आसान नहीं
ReplyDeleteमगर फिर भी यह जरूरी है बहुत बहुत !''
........ लाजवाब कविता का बेशकीमती अनुवाद !!!
bas "EK CHUP".
ReplyDeleteshukriya.
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता संतोष भाई... और बहुत बढ़िया अनुवाद। लगा ही नहीं कहीं से कि कोई अनुवाद पढ़ रहा हूं... बहुत-बहुत आभार....
ReplyDeleteवाह वाह !!
ReplyDeleteकविता पढ़ कर आपको ऐसा लगे कि ..अरे वाह इतनी सुन्दर ...यह तो में भी लिख सकता हु . निश्चित मानिए लेखक सफल हो गया है .
ReplyDeleteमजेदार कविता है यह.....सारी चीज़ों के अच्छा रहने के लिए जो बदलाव ज़रूरी हैं.....उन्हें कल्पना(एक हद तक) के पार ले जा पाना बड़ा आश्चर्यजनक है. मनोज भाई, आपके अनुवाद की प्रशंसा तो है ही लेकिन आपके चयन भी क़ाबिल-ए-तारीफ़ होते हैं.
ReplyDeleteमाफ करें..उपर मैं मनोज भाई लिखते हुए संतोष भाई लिख गया हूं... यह अजीब ही हो रहा है कि एक मित्र के नाम में दूसरे मित्र दखल दे रहे हैं... खैर इस तरह की मन:स्थिति में रहकर टिप्पणी लिखने के लिए क्षमा...शायद मैं फदील की कविता की खुमारी में था
ReplyDeletebahut zaruri hogaya hai maalik ki tu apni taqseem ke meyaar ko badal de,,,,,,,,,
ReplyDeleteशानदार....
ReplyDeleteबहुत प्रासंगिक और बहुत अच्छा अनुवाद। आभार मनोज भाई।
ReplyDeletebahut hi sundar kavita...ek alternate imagination. dhanyawad!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा कविता.
ReplyDeleteअपने ब्लॉग पर इसका लिंक दिया है. उम्मीद है आपको ऐतराज़ न होगा.