निकानोर पार्रा की कविताओं के क्रम में आज उनकी कविता भिखारी
भिखारी : निकानोर पार्रा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
आप इस शहर में नहीं रह सकते
गुजर-बसर के लिए किसी जाहिर आमदनी के बगैर :
ऐसा क़ानून है पुलिस का.
कुछ लोग सैनिक हैं
जो अपने देश के लिए अपना खून बहाते हैं
(ऐसा उद्धृत किया जाता है)
कुछ और लोग मक्कार कारोबारी हैं
जो एक किलो आलूबुखारे में
दो-तीन ग्राम काट लेते हैं.
और उसके बाद पुजारी हैं
जो अपने हाथों में एक किताब लिए फिरते हैं.
इनमें से हर एक अपना धंधा जानता है.
और आपको क्या लगता है कि मैं क्या करता हूँ ?
गाते हुए
मैं ताकता रहता हूँ बंद खिड़कियों को
यह देखने के लिए कि क्या कोई उन्हें खोलेगा
और
मेरी तरफ
फेंकेगा
कोई
सिक्का.
वाह बहुत ख़ूब। बिल्कुल मुम्बई की कहानी लगती है। बहुत सुँदर अनुवाद।
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