येहूदा आमिखाई की एक और कविता...
कैसे एक झंडा : येहूदा आमिखाई
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कैसे एक झंडा आया वजूद में ?
मान लीजिए कि शुरूआत में
कोई एक समूची चीज थी, जो बाद में
दो टुकड़ों में फाड़ डाली गई, दोनों पर्याप्त बड़े
दो युद्धरत सेनाओं के लिए.
या जैसे समुद्र किनारे वाली कुर्सी में लगा
खुरदुरा धारीदार कपड़ा हवा में फड़फड़ाता
मेरे बचपन के एक परित्यक्त छोटे बगीचे में.
यह भी एक झंडा हो सकता था आपको उठाता हुआ
इसके पीछे चलने के लिए या इससे लगकर रोने के लिए
इसे धोखा देने या इसे भूल जाने के लिए.
मुझे नहीं पता. मेरे युद्धों में
धूल और धुंए में छिपे धूसर सैनिकों के सामने
किसी झंडा उठाए शख्स ने कदमताल नहीं किया.
मैनें देखा है झटके से चीजों को शुरू होते हुए,
और कांतिहीन रेत के टीलों की ओर
शीघ्र वापसी में उन्हें समाप्त होते हुए.
मैं बहुत दूर हूँ इन सबसे, उस शख्स की तरह
जो एक पुल के बीचोबीच
भूल जाता है उसके दोनों सिरों को
और वहीं खड़ा रह जाता है
रेलिंग पर झुका हुआ
नीचे बहते हुए पानी को देखने के लिए :
वह भी एक झंडा ही है.
:: ::
''नीचे बहते पानी को देखने के लिए ''..........
ReplyDeleteदेखो वृक्ष पहाड़ का सीना चिर कर जीवन रस खींच रहा है. वाह...!
ReplyDeleteHi Manoj, would it be possible for you to also post the original poems ?
ReplyDeleteअनुपमा जी, मुझे दुःख है कि ऐसा करना संभव नहीं है. समय और श्रम के साथ-साथ यह स्पेस भी अधिक लेगा. वैसे भी यह कविताएँ मैं अंग्रेजी से अनुवाद करता हूँ जो कि खुद ही अनुदित होती हैं. आपने original की बात की है तो येहूदा आमिखाई की कविताएँ तो मूल रूप से हिब्रू में हैं. इसी तरह से महमूद दरवेश, निजार कब्बानी, दून्या मिखाइल आदि अरबी के कवि हैं. मैं इन सब का अनुवाद इनके अंग्रेजी अनुवादों से करता हूँ. अंग्रेजी में इन सभी कवियों की बहुत सी कविताएँ नेट पर उपलब्ध हैं जिन्हें आप चाहें तो देख सकती हैं.
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