वेरा पावलोवा की तीन कविताएँ...
आत्मवृत्त
मैं
वही
हूँ
जागती है जो
तुम्हारे
बाएँ.
* * *
चिड़ियों का चहचहाना सुना,
बारिश की बूंदों को चाटा,
उड़ान भरते समय ही
पत्ती ने देखा पेड़ को
और समझ पाई
कि वह क्या हुआ करती थी.
* * *
दोनों प्यार करते हैं और खुश हैं.
वह कहता है :
"जब तुम यहाँ नहीं होती,
ऐसा लगता है जैसे तुम
अभी-अभी बाहर निकली हो
और मौजूद हो बगल के कमरे में."
वह कहती है :
"जब तुम बाहर निकलते हो
और मौजूद होते हो बगल के कमरे में,
ऐसा लगता है जैसे
अब अस्तित्व ही नहीं रहा तुम्हारा."
* * *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
क्या कवितायेँ हैं ? बेहद खूबसूरत ! आभार मनोज जी !
ReplyDeleteबहुत बढिया सा..
ReplyDeleteआह
ReplyDeleteसुन्दर..
ReplyDeleteसुन्दर है
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