वेरा पावलोवा की इन कविताओं का मेरा अनुवाद सर्वप्रथम अक्टूबर 2010 में नई बात पर प्रकाशित हुआ था.
वेरा पावलोवा की आठ कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
1)
अगर ख्वाहिश है कोई,
तो लाजिमी है अफ़सोस.
अफ़सोस है कोई अगर,
तो जरुर बाक़ी होगी याद.
अगर बाक़ी है कोई याद,
तो क्या था अफ़सोस को.
अफ़सोस नहीं था अगर,
तो ख्वाहिश ही कहाँ थी.
* * *
2)
नामवरों से गुफ्तगू करने के लिये
चढ़ा लेना उनका चश्मा ;
यकसां होने को किताबों से
लिखने बैठ जाना उन्हें फिर से ;
संपादन करना पाक फरमानों का
और कायनात की तनहा कैद में
आधी रात के पहर
दीवाल थपथपाते बातें करना घड़ी से
* * *
3)
आओ स्पर्श करें एक-दूसरे को
जब तक हैं हमारे हाथ,
हथेली और कुहनियाँ...
प्यार करें एक-दूसरे से
दुःख पाने के लिये,
दें यातना और संताप
कुरूप करें और अपंग
ताकि याद रखें बेहतर,
और बिछ्ड़ें तो कम हो कष्ट
* * *
4)
खून की रवानी के खिलाफ
जूझता है जोश जन्म लेने को,
ज़बान की रवानी के खिलाफ
लफ्ज़ तोड़ देते हैं पतवार,
ख़यालों की रवानी के खिलाफ
बहती है ख्वाबों की कश्ती,
बच्चे की तरह हाथ चलाते तैरती हूँ मैं
आंसुओं की रवानी के खिलाफ.
* * *
5)
उसने ज़िंदगी दी तोहफे में मुझे.
मैं क्या दे सकती हूँ बदले में उसे ?
अपनी कविताएँ.
कुछ और है भी तो नहीं मेरे पास.
लेकिन फिर क्या सचमुच वे हैं मेरी ही ?
वैसे ही जैसे बचपन में
माँ के जन्मदिन पर देने के लिए
मैं चुना करती थी कोई कार्ड
और कीमत चुकाती थी पिता के पैसों से.
* * *
6)
एक वायस मेल है कविता :
कहीं बाहर चला गया है कवि
बहुत मुमकिन है न आए कभी लौटकर
कृपया अपना सन्देश छोड़ें
गोली की आवाज़ के बाद.
* * *
7)
सर्दियों में होती हूँ कोई जानवर,
एक बिरवा बसंत में,
गर्मियों में पतंगा,
तो परिंदा होती हूँ पतझड़ में.
हाँ औरत भी होती हूँ बाक़ी के वक़्त.
* * *
8)
बस इतना जान पाती कि किस जुबान का
तर्जुमा है तुम्हारा ‘आई लव यू’ ,
और पा जाती वह असल,
तो देखती शब्दकोष
जानने को कि तर्जुमा है चौकस
कि तर्जुमा-नवीस की नहीं है कोई खता.
* * *
वेरा पावलोवा की आठ कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
1)
अगर ख्वाहिश है कोई,
तो लाजिमी है अफ़सोस.
अफ़सोस है कोई अगर,
तो जरुर बाक़ी होगी याद.
अगर बाक़ी है कोई याद,
तो क्या था अफ़सोस को.
अफ़सोस नहीं था अगर,
तो ख्वाहिश ही कहाँ थी.
* * *
2)
नामवरों से गुफ्तगू करने के लिये
चढ़ा लेना उनका चश्मा ;
यकसां होने को किताबों से
लिखने बैठ जाना उन्हें फिर से ;
संपादन करना पाक फरमानों का
और कायनात की तनहा कैद में
आधी रात के पहर
दीवाल थपथपाते बातें करना घड़ी से
* * *
3)
आओ स्पर्श करें एक-दूसरे को
जब तक हैं हमारे हाथ,
हथेली और कुहनियाँ...
प्यार करें एक-दूसरे से
दुःख पाने के लिये,
दें यातना और संताप
कुरूप करें और अपंग
ताकि याद रखें बेहतर,
और बिछ्ड़ें तो कम हो कष्ट
* * *
4)
खून की रवानी के खिलाफ
जूझता है जोश जन्म लेने को,
ज़बान की रवानी के खिलाफ
लफ्ज़ तोड़ देते हैं पतवार,
ख़यालों की रवानी के खिलाफ
बहती है ख्वाबों की कश्ती,
बच्चे की तरह हाथ चलाते तैरती हूँ मैं
आंसुओं की रवानी के खिलाफ.
* * *
5)
उसने ज़िंदगी दी तोहफे में मुझे.
मैं क्या दे सकती हूँ बदले में उसे ?
अपनी कविताएँ.
कुछ और है भी तो नहीं मेरे पास.
लेकिन फिर क्या सचमुच वे हैं मेरी ही ?
वैसे ही जैसे बचपन में
माँ के जन्मदिन पर देने के लिए
मैं चुना करती थी कोई कार्ड
और कीमत चुकाती थी पिता के पैसों से.
* * *
6)
एक वायस मेल है कविता :
कहीं बाहर चला गया है कवि
बहुत मुमकिन है न आए कभी लौटकर
कृपया अपना सन्देश छोड़ें
गोली की आवाज़ के बाद.
* * *
7)
सर्दियों में होती हूँ कोई जानवर,
एक बिरवा बसंत में,
गर्मियों में पतंगा,
तो परिंदा होती हूँ पतझड़ में.
हाँ औरत भी होती हूँ बाक़ी के वक़्त.
* * *
8)
बस इतना जान पाती कि किस जुबान का
तर्जुमा है तुम्हारा ‘आई लव यू’ ,
और पा जाती वह असल,
तो देखती शब्दकोष
जानने को कि तर्जुमा है चौकस
कि तर्जुमा-नवीस की नहीं है कोई खता.
* * *
बेहद खूबसूरत अहसासों को समेटे प्यारी सी कवितायें !
ReplyDeleteआप के इस ब्लॉग नें मेरे लिए एक दम नयी कविताओं का पिटारा खोल दिया है मनोज साब...आज कल समय यहीं गुज़रता है...वेरा पावलोवा की कविताओं नें खास तौर पर प्रभावित किया है...क्यूँ किया है..कारणों की तलाश ज़ारी है... पर किया बहुत है.... बहुत बहुत शुक्रिया आपका... :)
ReplyDeleteI have become a fan of Vera pavlova's poetry. inki rachnaon se milwaane ke liye dhanywaad...:)
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