नाजिम हिकमत की एक और कविता...
वेटर : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वेटर : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
बर्लिन के अस्टोरिया रेस्टोरेंट की एक वेटर
क्या ही शानदार लड़की थी.
अपनी भारी ट्रे के उसपार से मुझे देख मुस्कराती थी वह.
वह उस देश की लड़कियों की तरह दिखती थी जिसे मैं खो चुका था.
कभी-कभी उसकी आँखों के नीचे काले घेरे हुआ करते थे --
मुझे नहीं पता क्यों.
उसकी किसी मेज पर
मुझे कभी बैठने को नहीं मिला.
वह मेरी किसी मेज पर कभी नहीं बैठा.
वह एक बुजुर्ग आदमी था.
और जरूर बीमार रहा होगा --
वह एक ख़ास खुराक पर था.
बड़ी उदासी से वह मेरे चेहरे को देखा करता,
मगर जर्मन नहीं बोल पाता था.
तीन महीनों तक वह दिन में तीन बार भोजन के लिए आया किया,
और फिर गायब हो गया.
क्या पता वह अपने वतन वापस चला गया हो,
या क्या पता मर गया हो उससे पहले ही.
23 जुलाई 1959
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बहुत करीने-से भावों को दूसरी भाषा में व्यक्त कर देते हैं आप...शुभकामनायें.
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