Monday, May 30, 2011

निज़ार कब्बानी : ताकि याद रख सकूं अपनी कविता का शिल्प


आज फिर निज़ार कब्बानी की कविता...












तुम्हारे साथ-साथ वक़्त भी चला जाता है : निज़ार कब्बानी 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

आह स्त्री कभी जो हुआ करती थी मेरा प्यार 
मैं टहलता रहा 
तुम्हारे चेहरे की गलियों में. 
मैनें पता किया अपने पुराने होटल के बारे में,
उस दूकान के बारे में 
जहां खरीदा करता था अखबार, 
और लाटरी टिकट 
जिन्हें कभी नहीं जीत पाया. 
न तो मुझे होटल मिला.
न ही दूकान.
पता चला कि 
अखबार छपना ही बंद हो गए 
तुम्हारे जाने के बाद से,
कि कहीं और चले गए 
शहर और फुटपाथ, 
कि सूरज ने अपना ठिकाना बदल लिया,
और बिक गए वे सितारे 
जिन्हें हम भाड़े पर लिया करते थे 
गर्मियों के दौरान. 
पेड़ों भी दर-बदर कर गए,
दूर देश उड़ गए परिंदे 
अपने बच्चों और संगीत के साथ. 
और समुन्दर मर गया 
अपनी लहरों पर पटक कर खुद को.   
                    ॹ 

आह स्त्री किसी पेड़ की तरह जड़ें जमाए हुए मेरी चमड़ी में 
बंद करो उगना मेरे भीतर 
मदद करो मेरी 
उन आदतों से निजात पाने में 
जो पड़ गईं एक-दूसरे के साथ की वजह से,
मदद करो 
पर्दों, किताबों की आलमारी,
और कांच के गुलदानों को
अपनी गन्ध से आज़ाद करने में. 
मदद करो मेरी 
उस नाम को याद करने में 
जिससे पुकारा जाता था मुझे स्कूल में. 
मदद करो 
कि याद रख सकूं तुम्हारी देंह के आकार में ढलने से पहले का 
अपनी कविता का शिल्प. 
मदद करो 
कि फिर से पा सकूं अपनी भाषा 
जो नहीं बोली जाती किसी और स्त्री से 
तुम्हारे सिवाय. 
                    ॹ 

तुम्हारी आवाज़ की बरसाती गलियों में 
मैं भटकता रहा 
एक छाते की तलाश में.
अपने साथ लिए फिर रहा था उस शहर का नक्शा 
जहां प्यार किया था तुमसे,
उन नाईटक्लबों के नाम 
जहां नाचा था तुम्हारे साथ, 
मगर पुलिस वालों ने मेरी हँसी उड़ाई 
और बताया 
कि जिस शहर की तलाश में था मैं 
उसे निगल गया था समुन्दर 
दसवीं सदी में. 
                    :: :: ::    

4 comments:

  1. बड़ी जबरदस्त कवितायेँ हैं ये भी ! कब्बानी की सोंच को सलाम और मनोज जी को शुक्रिया !

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  2. सूरज ने आपना ठिकाना बदल लिया ....और बिक गए वो तारे ...जिन्हें हम बह्दे पर लिया करते थे ...गर्मियों के दोरान ...समन्दर मर गया ...आपनी लहरों को पटक कर ...खुद को ....वाह्ह जबरदस्त विश्लेषण की पक्तियां ....बहुत शक्रिया मनोज जी ....इस अनुवाद के लिए !!!!!!!!!!!!!!!!! Nirmal Paneri

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  3. aur samundar mar gaya......apni lehro par patak kar khud ko........mja aa gya padhkar ......:) bahut shara dhanyavaad aur shukriya bhi

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