Monday, May 9, 2011

नाजिम हिकमत की कविता - 'तुम'


नाजिम हिकमत की एक और कविता...















तुम : नाजिम हिकमत 

(अनुवाद : मनोज पटेल) 


तुम एक खेत हो,
और मैं ट्रैक्टर.
तुम कागज़,
और मैं टाइपराइटर.
मेरी पत्नी, मेरे बेटे की माँ,
तुम गीत हो एक --
और मैं हूँ गिटार.
मैं गर्म, नम रात हूँ जो दक्षिण की हवा लेकर आती है --
तुम स्त्री हो नदी के बगल से गुजरती हुई,
उसपार देखती हुई रोशनियों को.
मैं पानी हूँ,
और तुम पीने वाली.
मैं हूँ सड़क से गुजरता हुआ राहगीर,
और तुम वह हो जो अपनी खिड़की खोलकर 
इशारे करती है मेरी तरफ.
तुम चीन हो,
और मैं माओ त्से तुंग की फ़ौज.
तुम एक फ़िलीपीनी लड़की हो चौदह साल की,
और मैं बचाता हूँ तुम्हें 
एक अमेरिकी नाविक के शिकंजे से.
तुम एंटोलिया में 
एक पहाड़ी गाँव हो,
मेरा शहर हो तुम,
सबसे ज्यादा खूबसूरत और सबसे ज्यादा नाखुश.
तुम मदद की एक पुकार हो -- मेरा मतलब, तुम मेरी मातृभूमि हो ;
तुम्हारी तरफ दौड़ते आ रहे क़दमों की आहट मेरी है.
                                                                                              1951 
                                    :: :: 

3 comments:

  1. नाजिम हिकमत ने अपनी मातृभूमि से अपने संबंधों की सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है !
    बधाई आपको मनोज जी !

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  2. नाजिम हिकमत मेरे सर्वाधिक पसंदीदा कवि हैं, उनका नाम सुनते ही मुझे रोमांच होने लगता है.बधाई आपको उनकी कविता पढवाने के लिए.मुझे लगता है नाजिम की कविता का भरपूर अनुवाद हिन्दी में होना चाहिए और यह काम आपसे बेहतर कौन कर सकता है.

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  3. 'तुम' की अदभुत व्याख्या.....

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