Wednesday, May 11, 2011

मौत ने मेरे पास अपना अकेलापन पहले ही भेज दिया है


नाजिम हिकमत की कविताओं के क्रम में तीन और कविताएँ...

ए सेल्फ पोर्ट्रेट : नाजिम हिकमत इन हिज प्रिजन सेल 1946 




 





मेरा वक़्त आ पहुंचा है 

मेरा वक़्त आ पहुंचा है 
जब मैं अचानक छलांग लगा दूंगा शून्यता में.
कभी नहीं एहसास होगा मुझे अपने सड़ते हुए शरीर का 
या अपनी आँखों के कोटर में रेंगते हुए कीड़ों का.

मैं लगातार सोचता रहता हूँ मौत के बारे में 
इसका मतलब है कि मेरा वक़्त नजदीक है. 
                                                                    10 सितम्बर 1961
                                                                               लीप्ज़िग 
                         :: :: ::

मैं बूढ़ा होने का आदी होता जा रहा हूँ 

मैं बूढ़ा होने का आदी होता जा रहा हूँ,
दुनिया का सबसे मुश्किल हुनर -- 
आखिरी बार खटखटाना दरवाजों को,
अंतहीन विछोह.
समय बीतता जा रहा है, बीतता जा रहा है...
मैं विश्वास खो देने की कीमत पर समझना चाहता हूँ.
मैनें तुमसे कुछ कहना चाहा, और कह न सका.
दुनिया अल्सुबह के सिगरेट सी लगने लगी है : 
मौत ने मेरे पास अपना अकेलापन पहले ही भेज दिया है.
जलन होती है मुझे ऐसे लोगों से जिन्हें पता ही नहीं कि वे बूढ़े हो रहे हैं,
इतना डूबे हैं वे अपने काम में. 
                                                                      12 जनवरी 1963 
                         :: :: ::

मेरा क्रियाकर्म 

क्या मेरा क्रियाकर्म नीचे अपने आँगन से शुरू होगा ?
तुम मेरा ताबूत तीसरी मंजिल से नीचे कैसे लाओगी ?
लिफ्ट में यह समाएगा नहीं,
और सीढ़ियाँ बहुत संकरी हैं.

शायद आँगन में घुटनों तक धूप हो, और कबूतर हों 
शायद बर्फ हो वहां बच्चों की खिलखिलाहट के साथ,
या क्या पता बारिश से धुली हुई डामर हो वहां.
और कूड़ेदान हों हमेशा की तरह. 

अगर, जैसा कि यहाँ रिवाज है, मुझे चेहरा उघाड़ कर रखा जाए ट्रक में,
शायद कोई कबूतर कुछ गिरा दे मेरे माथे पर : यह शुभ संकेत होगा. 
बैंड बजाने वाले हों या न हों, बच्चे जरूर आएँगे मेरे पास -- 
उन्हें पसंद होते हैं अंतिम संस्कार. 

हमारी रसोई की खिड़की मुझे जाता हुआ देखेगी. 
बालकनी में सूखते कपड़े लहराते हुए मुझे विदा करेंगे.
यहाँ, मैं तुम्हारी कल्पना से भी ज्यादा खुश रहा.
दोस्तों, आप सबके लिए मैं लम्बी और खुशहाल ज़िंदगी की कामना करता हूँ. 

                                                                       अप्रैल 1963 
                                                                                मास्को 
                         :: :: ::

(अनुवाद : मनोज पटेल) 

17 comments:

  1. आशिकी से मौत से हो जाये तो क्या कहना...मौत को लेकर इतनी बेतकल्लुफी ही जिंदगी के करीब लाती है शायद. कितनी शांति है इन कविताओं में.

    बालकनी में सूखते कपड़े मुझे लहराते हुए विदा करेंगे....वाह!

    ReplyDelete
  2. बच्चे जरूर आएँगे मेरे पास --
    उन्हें पसंद होते हैं अंतिम संस्कार.


    शुक्रिया !

    ReplyDelete
  3. "बैंड बजाने वाले हों या न हों,बच्चे जरुर आयेंगे मेरे पास
    उन्हें पसंद होते हैं अंतिम संस्कार"-क्या बात है.कविता लिखने ही नहीं पढ़ने और समझने के फार्मुलों को झिझोंड़ कर रख देने वाले कवि हैं नाजिम हिकमत.

    ReplyDelete
  4. gazab.. shabd bol gaye hai, kya comment diya jaye..

    ReplyDelete
  5. dil ko chhu lene vali rachnayein hain

    ReplyDelete
  6. yahan mai tumhari kalpana se bhi jyada khush raha ..........kya lines hai shabd nahi hai bayan karne ko...........

    ReplyDelete
  7. is blog ne fir se jeene ki khwahish paida
    is blog ne antarman ko punarjeevit kar diya..!

    ReplyDelete
  8. बहुत ही उम्दा काम कर रहे है आप मनोज इसके लिए बधाई ...........

    ReplyDelete
  9. बहुत ही उम्दा काम कर रहे है मनोज आप इसके लिए बधाई ....

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...