येहूदा आमिखाई की दो कविताएँ...
एक यहूदी लड़की के साथ
जिसकी आँखों में अमेरिकी उम्मीद है
और जिसकी नाक अब भी बहुत संवेदनशील
यहूदी-विरोधी वाद को सूंघने में.
"तुमने ऎसी आँखें कहाँ से पाईं ?"
जन्म के समय तो नहीं मिलतीं किसी को ऎसी आँखें --
इतना रंग और इतनी उदासी.
उसने किसी फ़ौजी का कोट पहन रखा था, सेवामुक्त
या मृत, किसी घिसी-पिटी जंग की
जीत या हार में.
"जलाई जा रही चिट्ठियों की आग में
एक कप काफी बनाना भी नामुमकिन है."
इसके बाद चलते चले जाना
किसी खूबसूरत, गुप्त जगह की ओर
जहां किसी अक्लमंद और तजुर्बेकार फील्ड कमांडर ने
रख छोड़ी होंगी अपनी मोर्टारें.
"तुम्हारे चले जाने के बाद, गर्मियों में,
ये पहाड़ियां ढँक जाती हैं एक मुलायम ख़याल से."
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हे भगवान, जो आत्मा
हे भगवान, जो आत्मा
तुमने दी मुझे
धुंआ है --
प्रेम की स्मृतियों के दिए
अंतहीन जलने के जख्मों से.
जिस क्षण हम जन्म लेते हैं
हम इसे जलाना शुरू कर देते हैं
और जलाते रहते हैं
जब तक धुंआ
ख़त्म न हो जाए धुंए की तरह.
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(अनुवाद : मनोज पटेल)
मनोज जी बहुत अचछी कविताएँ हैं. आप बहुत सधा अनुवाद करते हैं.
ReplyDeleteयेहूदा अमीखाई के की सुन्दर कविताओं का सुन्दर अनुवाद फिर देखने को मिला ! आप अनूदित कविताओं पर अपनी टिप्पणी भी दिया करें ,मनोज जी !
ReplyDeletedono kavita me alag alag bhaav kintu behad sundar
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