सर्गोन बोउलुस की एक और कविता...
चिट्ठी मिली : सर्गोन बोउलुस
(अनुवाद : मनोज पटेल)
तुमने बताया
कि तुम्हारे लिखते समय
बम बरस रहे हैं,
छतों के इतिहास
और मकानों के नामोनिशान मिटाते हुए.
तुमने कहा :
मैं तुम्हें यह चिट्ठी लिख रहा हूँ
जबकि उन्हें ख़ुदा ने इजाज़त दे रखी है
मेरी तक़दीर लिखने की ;
इसी बात पर मुझे शंका होती है उसके ख़ुदा होने में.
तुमने लिखा :
मेरे शब्द, गोलियों की बरसात से डराए जा रहे प्राणी हैं.
इनके बिना मैं ज़िंदा नहीं रह पाऊंगा.
"उनके" चले जाने के बाद, मैं उन्हें फिर से पा लूंगा
उनकी सारी पवित्रता के साथ जैसे मेरी सफ़ेद पलंग वहशियों की अंधेरी रात में.
हर रात, मैं चौकस रहता हूँ अपनी कविता में सुबह तलक.
फिर तुमने कहा :
मुझे एक पहाड़ की जरूरत है, एक शरण स्थल की. मुझे दूसरे इंसानों की जरूरत है.
और तुमने चिट्ठी भेज दिया.
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सच कहा ,हमारे लिए खुदा से ज्यादा इंसान ज़रूरी है !
ReplyDeleteअच्छी कविता ,अच्छा चयन ,सुन्दर अनुवाद !
कविता में जिन्दगी के खास संदर्भों की मार्मिक छवियां... अच्छा चयन.. बधाई...
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