Thursday, June 16, 2011

महदी मुहम्मद अली की कविताएँ


इराकी कवि महदी मुहम्मद अली 70 ' के दशक से ही निर्वासन में रह रहे हैं. उनकी कविताएँ ईराक और अरब की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. निर्वासन की पीड़ा उनकी कविताओं की विशेषता है. 


शर्त 

जब शहर एक बड़ी सी जेल हो जाए 
तुम्हें होना पड़ेगा 
          एक धारदार तलवार की तरह सतर्क 
          गेहूं के एक दाने की तरह सरल 
          एक ऊँट की तरह धैर्यवान. 
                                                  [1979]
                    * * * 

उड़ान 

वह अपने साथ ले जा रहा था 
सिर्फ 
अपने कागज़ात, 
अपनी सावधानी,
एक दोस्त की विदाई,
एक इतना छोटा सूटकेस जो नज़र ही न आए,
और अपनी आशंकाएं कि सड़क क्या कुछ छिपा सकती थी. 
                                                   [1979]
                     * * * 

मातृभूमि 

ऐ नन्हें पेड़ जिसे रोपा था मैनें कुछ साल पहले, 
क्या हमारे आँगन की घास अब भी याद करती है मुझे ?
और चहारदीवारी की वह दरार,
क्या अब भी वैसे ही भरी रहती है झांकते बच्चों की आँखों से ? 

ऐ जवां स्त्री जिसके प्यार में गुम हो गया था मैं, 
क्या अब भी तनहा है मेरा कमरा,
मातृभूमि की खामोशी में लोटता हुआ,
मातृभूमि जो छटपटा रही है युद्ध की राख में,
युद्ध जो निगलता जा रहा है स्मृतियाँ ? 
                                                  [1981] 
                    * * * 

विरासत 

विरासतें कोई नहीं थीं.
अचानक उन्होंने एक फर्जी गौरव ओढ़ लिया,
जो फैला था सदियों पहले डायनासारों तक. 
                                                  [1979] 
                    * * * 

देश निकाला 

कैसे गहरे गड्ढे ने 
ढँक लिया था मेरे और मेरी माँ के बीच की दूरी को 
वह बिछड़ना बिना अलविदा कहे ही 
जैसे मैं जा रहा था सिर्फ पानी पीने के लिए 
या पोछने के लिए अपने हाथ ! 
                    :: :: :: 

10 comments:

  1. लाजवाब .खासकर ''विरासत '',,,सभी कविताये ..

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  2. सचमुच होना तो पड़ेगा धारदार तलवार की तरह सतर्क और गेहूं के दाने की तरह सरल...

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  3. निर्वासन की पीड़ा से उपजी महदी मोहम्मद अली की कवितायें छोटी हैं मगर गहरा असर छोड़ती हैं.

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  4. बहुत दर्द बिखरा पड़ा है इन कविताओं में ! अपनी मातृभूमि की यादों में गुजरता बेरहम वक़्त ! आभार मनोज जी ,प्रस्तुति के लिए !

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  5. बहुत अच्छा संग्रह

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  6. सुंदर अनुवाद !
    हूक भरी संवेदनाएँ !!

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  7. bahut marmik kavitaen hain.. manoj , hardik badhai.

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