नाजिम हिकमत की एक और बहुत अच्छी कविता...
मेरी पत्नी की चिट्ठी : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं
तुमसे पहले मरना चाहती हूँ.
क्या तुम्हें लगता है कि बाद में मरने वाला
पा जाता है पहले मरने वाले को ?
मुझे तो ऐसा नहीं लगता.
बेहतर होगा कि मुझे जला देना
और रख देना अपने फायरप्लेस के ऊपर एक मर्तबान में.
मर्तबान साफ़ शीशे वाला हो,
ताकि तुम देख सको मुझे भीतर...
देखो मेरी कुर्बानी :
मैनें छोड़ दिया धरती होना,
छोड़ दिया फूल होना,
सिर्फ तुम्हारे पास बने रहने के लिए.
और मैं राख हो गई
तुम्हारे साथ रहने के लिए.
फिर, जब तुम छोड़ना यह दुनिया,
आ जाना मेरे मर्तबान में
और हम उसमें रहेंगे साथ-साथ,
तुम्हारी राख रहेगी मेरी राख के साथ,
जब तक कि कोई नासमझ नववधू
या कोई जिद्दी पोता
हमें बाहर न फेंक दे...
मगर
तब तक
हम
आपस में
ऐसे मिल चुके होंगे
कि कचरे में भी हमारे तमाम कण
अगल-बगल ही पड़ेंगे.
हम साथ-साथ डुबकी लगाएंगे धरती में.
और अगर किसी दिन पानी पाकर कोई जंगली फूल
फूट आता है धरती के उस टुकड़े से,
तो उसकी डंठल में
दो कलियाँ जरूर होंगी :
एक तुम होओगे
और दूसरी मैं.
मैं अभी
मरने नहीं जा रही हूँ.
अभी एक और बच्चा जनना चाहती हूँ.
पूरी भरी हूँ मैं ज़िंदगी से
और गर्म है मेरा खून.
बहुत दिन ज़िंदा रहना है मुझे, बहुत दिन --
तुम्हारे साथ.
मौत मुझे डराती नहीं,
बस अपने क्रिया कर्म के इंतज़ाम
मुझे कुछ सोहते नहीं.
मगर मेरे मरने के पहले
सबकुछ बदल सकता है.
क्या तुम्हारे जेल से जल्दी निकलने की कोई गुंजाइश है ?
मेरे भीतर कुछ है, जो कहता है :
शायद.
18 फरवरी 1945
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इतना ही कोमल और इतनी ही अजीब इच्छाओं से भरा होता है प्रेम .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है यह ख़त ,जिसमें उम्मीद है,प्यार है, निष्ठा है ,समर्पण है ! नाजिम हिकमत की इस दिलकश नज़्म के बढ़िया अनुवाद के लिए बधाई,मनोज जी !
ReplyDeleteवाह ! प्रेम भी क्या खूब शै है... राख होकर भी साथ साथ रहने का ख्वाब.... बहुत सुंदर!
ReplyDeleteजिन्दगी के रस से लबालब भरी कविता।
ReplyDeleteये कैसा ख़त है .. आप कविता के एन्साइक्लोपीडिया हैं ... बधाई !
ReplyDeleteसुलगना,
ReplyDeleteआग होना,
और राख़ होना
दरअसल शाम में तुम्हारे साथ मिल जाना है !
मैंने देखा है
परछाई, शाम और राख़ के रंग को
सब ताप के बाद की तासीर !
मनोज जी मैं कुछ कह नहीं सकता सिर्फ अपनी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ !
ajeeb kasak hai is khat me
ReplyDeleteek stree hee likh sakti hai aisa khat. lekin likha hai kavita me purush ne. prem tika rahta hai kai baar prateeksha me kai baar samarpan me kabhi ulahano me kabhi oob me aur marta nahi hai marne ke baad bhi. shukriya dost. bahut sundar kavita.
ReplyDeleteprem me parityag ki yah bhavana manviya marmikata ke marm ko vyakta karti hai.
ReplyDeleteSajeev aur nirjeev dono avasthaon mein saath rahna... yahi prem ki aadarsh aur sampurn pariniti hai... Rakh se rakh milne ke bimb se yeh murt aur aur bhi khusurat ho jaati hai... bahut khubsurat nazm hai...
ReplyDeleteसुन्दर...बस इतना ही कह पाउंगी!!!
ReplyDeleteसुप्रभात,बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteसुप्रभात,बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteपति के जेल में होने पर पत्नी मृत्यु के पश्चात उन दोनों की राखों को मिलाने से एक होने की कामना करती है.जेल जाने वालों के घर वालों पर ऐसी कविता बहुत कम पढ़ने को मिलती है.
ReplyDeleteप्रेम .. सर्वस्व समर्पण .. की भावना से लिखा बहुत ही खुबसूरत पत्र ... और आपको कोटिश: साधुवाद सुन्दर अनुवाद के लिए ..!!
ReplyDeleteshabd ki shakti ese kahte hain.dhanyavad.
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