Thursday, June 23, 2011

येहूदा आमिखाई की कविताएँ


येहूदा आमिखाई की किताब 'Time'  से दो और कविताएँ... 











वक़्त : येहूदा आमिखाई 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

यह मेरी माँ का घर है. 
बड़ा हो गया है वह पौधा 
जिसने इसपर चढ़ना शुरू किया था मेरे बचपन में 
और चिपका हुआ है इसकी दीवार से.
मगर मैं उजाड़ दिया गया था बहुत पहले. 

माँ, तुमने जन्म दिया था मुझे तकलीफ सहकर,
तकलीफ में ही रहता है तुम्हारा बेटा.
उसकी उदासी कंघी करके संवरी हुई है,
और अच्छे कपड़े पहनकर तैयार है उसकी खुशी.
अपने ख़्वाब की मदद से वह अपनी रोटी कमाता है 
और अपनी रोटी की मदद से अपने ख़्वाब. 
औसत सालाना बारिश 
उसे छूती भी नहीं 
और रोनी परछाईं सी गुजर जाती हैं 
तापमान की डिग्रियां उसके पास से. 

ओह मेरी माँ, जिसने पेश किया 
मेरे सामने पहला प्याला 
इस दुनिया में : कहते हुए, 'तुम्हारी तंदरुस्ती के लिए'.
मेरे बेटे!
मैं कोई भी बात नहीं भूली हूँ, मगर मेरी ज़िंदगी 
शांत और गहरी हो गई है 
जैसे गले में गहरे कोई दूसरा घूँट,
पहले से अलग, जो पिया जाता है 
चूसते, चटखारा लेते, खुश होंठों से. 
सीढ़ियों पर तुम्हारे कदम 
हमेशा रहते हैं मेरे भीतर, 
न तो पास आते हैं कभी और न ही कभी दूर जाते,
धड़कनों की तरह.     
                    :: :: :: 

यह क्या है? औजार रखने की 
एक पुरानी जगह.
नहीं, यह अतीत हो चुका एक महान प्यार है. 

डर और ख़ुशी साथ-साथ मौजूद थे 
इस अँधेरे में 
और उम्मीद. 
शायद पहले भी एक बार आ चुका हूँ मैं यहाँ.
मैनें नजदीक जाकर पता नहीं किया.

यह आवाजें पुकार रही हैं किसी ख्वाब से.
नहीं, यह एक महान प्यार है.
नहीं, यह औजार रखने की जगह है. 
                    :: :: :: 

3 comments:

  1. मां से मुखातिब कविता गहन संवेदना से भरी है। दूसरी कविता जिन्‍दगी और प्‍यार को देखने के लिए नया नजरिया दे रही है। जीवंत...

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  2. यहूदा की कवितायेँ पढ़कर कभी-कभी मन में आता है कि कविता की एक परिभाषा देदूं -'कि कविता दर्द को कहने का सबसे अलग तरीका है !'
    बहुत अच्छा अनुवाद किया आपने मनोज जी ! धन्यवाद !

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  3. पहली बार यहाँ आया लगता है कुछ दिन यहीं रहना पड़ेगा .....अच्छा ब्लॉग.

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