Friday, June 10, 2011

यूसफ अल-सा'इघ : रात का खाना


यूसफ अल-सा'इघ की एक और कविता पढ़ते हैं... 


रात का खाना : यूसफ अल-सा'इघ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

हर शाम जब मैं घर लौटता हूँ 
मेरी उदासी अपने कमरे से बाहर निकल आती है 
अपना सर्दियों वाला ओवरकोट पहने हुए 
और मेरे पीछे-पीछे चलने लगती है. 
मैं चलता हूँ तो वह मेरे साथ चलती है, 
बैठता हूँ तो बैठ जाती है मेरे बगल,
रोता हूँ तो वह रोती है मेरे रोने पर, 
आधी रात तक 
जब तक कि हम थक नहीं जाते. 
ठीक इसी वक़्त 
मैं रसोई में जाते हुए देखता हूँ अपनी उदासी को 
रेफ्रीजरेटर का दरवाजा खोलकर 
मांस का एक काला टुकड़ा निकालते 
और तैयार करते हुए मेरा रात का खाना. 
                    :: :: :: 

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