आज रोक डाल्टन की यह कविता...
चोर बाज़ार में जनता की संपत्ति का बंटवारा : रोक डाल्टन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
उन्होंने हमें बताया कि पहली शक्ति है
कार्यपालिका शक्ति,
और विधायी शक्ति दूसरी शक्ति है
जिसे ठगों के एक गिरोह ने
"सत्ता पक्ष" और "विपक्ष" में बाँट रखा है,
और चरित्र भ्रष्ट हो चुका (फिर भी माननीय) सुप्रीम कोर्ट
तीसरी शक्ति है.
अखबारों, रेडियो और टी. वी. ने खुद को
चौथी शक्ति का दर्ज़ा दे रखा है और वाकई
वे बाक़ी तीनों शक्तियों के हाथ में हाथ डाले चलते हैं.
अब वे हमें यह भी बता रहे हैं कि
नई लहर वाले युवा पांचवी शक्ति हैं.
और वे हमें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि सभी चीजों और शक्तियों के ऊपर
ईश्वर की महान शक्ति है.
"और अब चूंकि सभी शक्तियों का बंटवारा हो चुका है
-- वे निष्कर्ष रूप में हमें बताते हैं --
किसी और के लिए कोई शक्ति नहीं बची है
और अगर कोई कुछ और सोचता है
तो उसके लिए फौज और नेशनल गार्ड हैं."
शिक्षाएं :
1) पूंजीवाद शक्तियों की एक बड़ी मंडी है
जहां केवल चोर अपना धंधा करते हैं
और सच्ची शक्ति की वास्तविक मालिक
यानी आम जनता की बात करना जानलेवा हो सकता है.
2) शक्ति के वास्तविक मालिक को उसका
हक़ दिलाने के लिए यह जरूरी होगा
कि चोरों को व्यापार के मंदिरों से लतिया कर केवल बाहर ही न कर दिया जाए
क्योंकि वे बाहर जाकर फिर संगठित हो जाएंगे ;
बल्कि बाज़ार को व्यापारियों के
सर तक ले आना होगा.
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विचारोत्तेजक और सामयिक कविता ....
ReplyDeleteअदभुत कविता... समीचीन प्रस्तुती
ReplyDeleteIts very powerful poem. Thanks Manoj sir.
ReplyDeletePavan patel
एक वैश्विक सच्चाई को इतने कम और बेबाक शब्दों में आकार देती यह एक महत्वपूर्ण कविता है, लेकिन कविता के अंत में 'शिक्षाएं' में दर्ज दूसरी शिक्षा जरा कम संप्रेषित हो पाई "कि चोरों को व्यापार मंदिर से लतियाकर केवल बाहर ही न कर दिया जाए--- बल्कि बाजार को व्यापारियों के सर तक ले आना होगा।" ?
ReplyDeleteएक विनम्र सुझाव और - मनोज अनुवाद के लिए विश्व साहित्य की बेहद खूबसूरत और महत्वपूर्ण कविताओं का चयन करते हैं, ऐसी कविताओं का अनुवाद प्रस्तुत करते हुए यदि उस कवि का संक्षिप्त परिचय और संबंधित कविता से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां भी प्रस्तुत कर सकें, तो यह उस कवि और कविता को जानने-समझने का एक बेहतर अवसर हो सकता है।
बहुत सुंदर रचना है.....शुभकामनाएँ......
ReplyDeleteमगर "शक्तियों के वितरण" और "चुनने की स्वतंत्रता" का "हर विकल्प" अंततः भ्रष्ट हो जाने के लिए शापित है....इंसान को चुनने के लिए हमेशा दो या दो से अधिक खराब विकल्प ही मिलते रहे हैं......ये उसकी किस्मत....(किस्मत कहना शाब्दिक विवशता है, इसके अलावा अगर कोई और सटीक शब्द हो सकता है तो वो) कि वो खुली आँखों से टटोलकर किसे चुन ले...
-कुमार पंकज