ईराकी असीरियाई कवि सर्गोन बोउलुस (1944 - 2007) का जन्म पश्चिमी ईराक के गाँव हब्बानिया में हुआ था. उन्होंने कम उम्र में ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था और 1961 में उनकी सोलह कविताएँ बेरूत की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुईं और बताते हैं वे बगैर पासपोर्ट, बगैर एक भी दीनार लिए पैदल ही बेरुत के लिए चल पड़े. उनके पास और कुछ नहीं सिर्फ शेक्सपियर के किंग लीयर का एक अनुवाद था. जैसे-तैसे वे लेबनान पहुंचे जहां कुछ समय बाद उन्हें कोई कागजात न होने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया. वे इस शर्त पर रिहा किए गए कि उन्हें बेरुत छोड़ना होगा. रिहा होने के बाद 1968 में वे अमेरिका चले गए. 2007 में उनका निधन हो गया.
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हार जैसी दिखने वाली कोई चीज
जो भविष्यवक्ता
उम मुहम्मद नाम की स्त्री की
पतली गरदन से झूलती रहती है
और कुछ नहीं
बस काले चमड़े की एक छोटी सी पुड़िया है.
उसने बताया
कि पुड़िया में
उसकी मातृभूमि की थोड़ी सी मिट्टी है.
वह अम्मान के
हशीमिया चौराहे की
एक पत्थर की बेंच पर बैठी थी,
हजारों अन्य लोगों की तरह
किसी भी देश के
वीजा के इंतज़ार में.
उसने कहा कि
उसे पता है सरहद पार करने के बाद
दुबारा इस मिट्टी को देखना
उसके नसीब में नहीं होगा.
इसलिए इसे ढोएगी वह
एक जुए की तरह
जहां भी वह जाए.
जहां भी वह जाए
अपने साथ लिए रहेगी वह
मिट्टी की काली पुड़िया.
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बहुत मार्मिक रचना... देश की मिट्टी की गंध हौसला देती है..
ReplyDeleteवाह.................अपने देश की माटी चन्दन ,अपने देश का पानी अमृत !
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