अडोनिस की कविता...
मौत का जश्न मनाना : अडोनिस
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मौत पीछे से आती है
तब भी जब वह हमारे आगे आ खड़ी होती है.
सिर्फ ज़िंदगी करती है आमना-सामना.
आँख एक सड़क है
और सड़क एक चौराहा.
एक बच्चा खेलता है ज़िंदगी के साथ,
एक बुजुर्ग इसका सहारा लिए रहता है.
बहुत ज्यादा बोलने से जंग लग जाती है जुबान में,
और आँख सूख जाती है ख़्वाबों की कमी से.
झुर्रियां --
चेहरे पर बनी नालियां,
दिल में बने गड्ढे.
एक देंह -- आधी दहलीज,
आधा झुकना.
सिर्फ एक पंख वाली
कोई तितली है उसका सर.
तुम्हें पढ़ता है आसमान
जब मौत तुम्हें लिख देती है.
आसमान की दो छातियाँ हैं;
जिनसे स्तनपान करते हैं सभी लोग
हर पल, हर जगह.
इंसान एक किताब है
जिसे ज़िंदगी पढ़ती रहती है लगातार,
और अचानक से पढ़ती है मौत
सिर्फ एक बार.
इस शहर के बारे में कुछ?
इसमें सुबह दिखाई पड़ती है छड़ी की तरह
उस अँधेरे में जिसे वक़्त कहते हैं.
बहार आई मकान के बगीचे में,
अपना सूटकेस रखा
और अपनी बाहों से गिर रही बारिश के नीचे
चीजों को बांटना शुरू कर दिया पेड़ों को.
कवि को हमेशा गलत क्यों समझा जाता है?
बहार उसे अपनी पत्तियाँ देती है
और वह उन्हें सौंप देता है रोशनाई को.
हमारा वजूद एक ढलान है
और हम ज़िंदा रहते हैं उसपर चढ़ने के लिए.
रेत, मैं तुम्हें मुबारकबाद देता हूँ.
सिर्फ तुम ही ढाल सकती हो
पानी और मरीचिका को
एक ही प्याले में.
:: :: ::
Waah
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteहर पल म्रत्यु से भरा जीवन और एक बेहद सुन्दर जीवंत म्रत्यु !