Sunday, June 26, 2011

एक ख़ुदा जो ज़िंदा है बिना इबादत के


अडोनिस की कविताएँ...
















भूखा 

वह भूख की तस्वीर बनाता है अपनी किताब में --
सितारों और सड़कों की -- 
और हवा की रुमाल से 
ढँक देता है पन्ने को 
          और हम देखते हैं 
          पलकें झपकाता प्यारा सूरज 
          और सांझ. 
                    :: :: :: 

दो कवि 

दो कवि खड़े हैं नाद और अनुनाद के बीच.
पहला बोलता है 
टूटे हुए चंद्रमा की तरह 
और दूसरा खामोश है जैसे कोई बच्चा 
जो हर रात सोता हो 
किसी ज्वालामुखी की गोद में.  
                    :: :: :: 

तुम कौन हो 

एक तितली पर जमी हैं मेरी निगाहें 
दहशत कोड़े फटकारती है मेरे गीतों पर 

-- तुम कौन हो?
-- काम पर निकला एक भाला 
          एक ख़ुदा जो ज़िंदा है बिना इबादत के. 
                :: :: :: 

एक पत्थर 

मैं इबादत करता हूँ इस शान्त पत्थर की  
जिसके बदन पर मुझे दिखता है 
अपना चेहरा 
और अपनी गुमशुदा कविता.
               :: :: :: 

(अनुवाद : मनोज पटेल)

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