अफ़ज़ाल अहमद सैयद की दो कविताएँ...
तुम एक अच्छी मेज़बान हो
मेरे लिए वह सेब ले आती हो
जिस पर तुम्हारे दांतों के निशान हैं
और खून आलूद अनार
और एक नज़्म
और एक छूरी
जो चीज़ों को टेढ़ा काटती है
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नज़्म
जहां तुम यह नज़्म ख़त्म करोगी
वहां एक दरख़्त उग आएगा
शिकार की एक मुहिम में
तुम उसके पीछे एक दरिन्दे को हलाक़ करोगी
कश्तीरानी के दिन
उससे अपनी कश्ती बाँध सकोगी
एक ईनामयाफ़्ता तस्वीर में
तुम उसके सामने खड़ी नज़र आओगी
फिर तुम उसे
बहुत से दरख्तों में गुम कर दोगी
और उसका नाम भूल जाओगी
और यह नज़्म
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(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
AFZAL AHMED SYED - افضال احمد سيد
जहां तुम यह नज़्म ख़त्म करोगी
ReplyDeleteवहां एक दरख़्त उग आएगा...
waah!
वाह, बड़ा गहरा और गंभीर व्यंग है इन कविताओं में ! बधाई मनोज जी !
ReplyDeleteNice...
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