नाजिम हिकमत की दो कविताएँ...
बिच्छू की तरह
रहते हो कायरता से भरे अँधेरे में.
तुम किसी गौरैया की तरह हो, मेरे भाई,
गौरैया की तरह
हमेशा रहते हो हड़बड़ी में.
तुम किसी सीपी की तरह हो, मेरे भाई,
सीपी की तरह बंद और संतुष्ट.
और तुम डरावने हो, मेरे भाई,
किसी सुप्त ज्वालामुखी की तरह डरावने.
एक नहीं,
पांच नहीं --
अफ़सोस की बात है कि लाखों की संख्या में हो तुम.
तुम किसी भेंड़ की तरह हो, मेरे भाई :
जब भेंड़ की खाल ओढ़े चरवाहा अपना डंडा उठाता है,
तुम झट से शामिल हो जाते हो झुण्ड में
और लगभग गर्व से भरे दौड़ पड़ते हो बूचड़खाने की तरफ.
मेरा मतलब है कि तुम इस दुनिया के सबसे अजीब प्राणी हो --
मछली से भी ज्यादा अजीब
जो पानी में होते हुए भी समुद्र को नहीं देख पाती.
और इस दुनिया में शोषण
तुम्हारी ही वजह से है.
और अगर हम भूखे, थके, लहूलुहान हैं
और पीसे जाते हैं जैसे शराब के लिए अंगूर,
यह तुम्हारी गलती है --
बहुत मुश्किल है मेरे लिए यह कहना,
मगर मेरे भाई, ज्यादा गलती तुम्हारी ही है.
1947
:: :: ::
आशावादी
जब वह छोटा था तो उसने कभी नहीं नोचे मक्खियों के पर,
न ही कभी टीन के डिब्बे बांधे बिल्लियों की पूंछ से,
माचिस की डिब्बियों में कभी नहीं बंद किया कीड़ों को,
न ही नष्ट किया कभी चींटियों की बांबी को.
वह बड़ा हुआ तो
ये सारी चीजें उसके साथ की गयीं.
जब वह मृत्युशय्या पर था
तो उसने मुझसे एक कविता सुनाने के लिए कहा,
सूरज और समुद्र के बारे में,
परमाणु रिएक्टरों और सेटलाइटों के बारे में,
मानव जाति की महानतम उपलब्धियों के बारे में.
6 दिसंबर 1958
बाकू
:: :: :: (अनुवाद : मनोज पटेल)
zindagi ka aaina dikhati do khoobsoorat kavitaye. shurkriya
ReplyDelete...........मछली से भी ज्यादा अजीब
ReplyDeleteजो पानी में होते हुए भी समुद्र को नहीं देख पाती .
और इस दुनियाँ में शोषण
तुम्हारी ही वजह से है .................
बहुत अच्छी कविता ,मनोज जी ,
सुन्दर अनुवाद और प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
behtrin...
ReplyDeletesheshnath pandey
कितना भी कटु हो सच तो सच ही है... मगर मेरे भाई ज्यादा गलती तुम्हारी ही है ! नाजिम हिकमत की कवितायें हमें अपने भीतर झाँकने को मजबूर करती हैं..
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