निकानोर पार्रा की दो कविताएँ...
महंगाई
रोटी की कीमत बढ़ती है, इसलिए रोटी की कीमत फिर बढ़ जाती है
किराए बढ़ते हैं
इस वजह से सारे किराए फ़ौरन दूने हो जाते हैं
कपड़ों की कीमत बढ़ती है
इसलिए कपड़ों की कीमत फिर बढ़ जाती है.
बचने का कोई रास्ता नहीं
एक खतरनाक चक्कर में फंस गए हैं हम.
खाना है पिंजड़े में.
ज्यादा नहीं, मगर है.
बाहर केवल आजादी का असीम विस्तार.
* * *
रस्म
जब कभी किसी लम्बे सफ़र के बाद
मैं वापस जाता हूँ
अपने देश
सबसे पहला काम मैं यह करता हूँ
पता करता हूँ उन लोगों के बारे में जिनकी मौत हो गई :
नायक हो जाते हैं सारे आदमी
बस मर जाने का सीधा सा काम करके
और नायक ही हमारे गुरू होते हैं.
और दूसरा काम
पता करता हूँ घायलों के बारे में.
इसके बाद ही
जब यह छोटी सी रस्म
पूरी हो जाती है
मैं सांस लेता हूँ :
अपनी आँखें बंद करता हूँ ज्यादा साफ़ देखने के लिए
और कड़ुवाहट से एक गाना गाता हूँ
सदी की शुरूआत के समय का.
* * *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मंहगाई और रस्म दोनों ही बहुत सुंदर कवितायें !
ReplyDeleteबेहतरीन अनुवाद
ReplyDeleteधारदार कवितायेँ ,सच्चाई की प्रखर अभिव्यक्ति ! मनोज जी ,धन्यवाद !
ReplyDeleteऔर कड़वाहट से एक गाना गाता हूँ,
ReplyDeleteसदी के शुरुआत के समय का ...
बढ़िया अनुवाद व चयन !