Sunday, June 19, 2011

सर्गोन बोउलुस : आखिर चाहती क्या है लाश


इराकी कवि सर्गोन बोउलुस का परिचय और उनकी एक कविता आप इस ब्लॉग पर पहले ही पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता...  


लाश : सर्गोन बोउलुस 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वे यातना देते रहे लाश को 
सुबह तक 
जब तक कि मुर्गा विरोध में उठ खड़ा नहीं हो गया. 
उन्होंने कीलें ठोकीं उसकी देंह में.
बिजली के तारों के कोड़े मारे 
और लटकाए रखा उसे पंखे से. 

आखिरकार जब 
थक कर सुस्ताने लगे यातना देने वाले, 
लाश ने अपनी छोटी उंगली हिलाई,
और अपनी जख्मी आँखों को खोलकर 
धीरे से कुछ कहा. 

क्या वह पानी मांग रही थी ?
या शायद रोटी ?
वह उन्हें बुरा-भला कह रही थी 
या और सताने के लिए ?

आखिर चाहती क्या है लाश ?
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. स्‍तब्‍धकारी कविता... यातना के चित्र में झांकता इराक का चेहरा... भाई मनोज जी, आप तो अपने प्रयास से हमें आसानी से दुर्लभ चीजें देते चले जा रहे हैं... बधाई...

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  2. अद्भुत ! विचलित कर देने वाली कविता।

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  3. मार्मिक ! लाश ने उनसे कहा -'तुम थक गए लेकिन मैं नहीं !'

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  4. यह छोटी सी कविता प्रतिरोध के नए सुर सुनाती है । बधाई मेरी !

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