Monday, June 13, 2011

नाजिम हिकमत : फिर से मृत्यु पर


नाजिम हिकमत की एक कविता... 


फिर से मृत्यु पर : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मेरी पत्नी,
जान मेरी ज़िंदगी की,
मेरी पिराए,
मैं सोच रहा हूँ मौत के बारे में,
यानी मेरी धमनियां 
सख्त हो रही हैं... 
किसी दिन 
जब बर्फ पड़ रही होगी,
या किसी रात 
या 
किसी गर्म दोपहर में,
हममें से कौन पहले मरेगा,
कैसे 
और कहाँ ?
कैसे 
और कौन सी होगी 
वह आखिरी आवाज़ जो वह मरने वाला सुनेगा,
कौन सा आखिरी रंग देखेगा वह,
यहाँ पीछे छूट जाने वाले की पहली हरकत क्या होगी, 
पहला लफ्ज़,
पहला आहार ?
क्या पता हम मरें एक-दूसरे से काफी दूर.
खबर 
चीखती हुई आएगी,
या बस इशारा करके चला जाएगा कोई 
यहाँ पीछे छूट गए को अकेला छोड़कर...    
और पीछे छूट गया वह अकेला 
गुम हो जाएगा भीड़ में.
मेरा मतलब है, यही ज़िंदगी है...
और यही सारी संभावनाएं, 
1900 के कौन से साल,
किस महीने,
किस दिन,
किस वक़्त ?

मेरी पत्नी,
जान मेरी ज़िंदगी की,
मेरी पिराए,
मैं सोच रहा हूँ मौत के बारे में,
अपनी जिंदगियों के बीतते जाने के बारे में.
मैं उदास हूँ,
शांत,
और गौरवान्वित.
जो भी पहले मरता है,
चाहे जैसे 
और चाहे जहाँ,
मैं और तुम 
कह सकते हैं कि
हमने प्रेम किया एक-दूजे से 
और प्रेम किया जनता के महानतम उद्देश्य से   
-- हम लड़े इसके लिए -- 
हम कह सकते हैं 
कि हम ज़िंदा रहे सचमुच. 
                    :: :: :: 

4 comments:

  1. मैं सोच रहा हूँ मौत के बारे में,
    अपनी जिंदगियों के बीतते जाने के बारे में.
    मैं उदास हूँ,
    शांत,
    और गौरवान्वित.
    जो भी पहले मरता है,
    चाहे जैसे
    और चाहे जहाँ,
    मैं और तुम
    कह सकते हैं कि
    हमने प्रेम किया एक-दूजे से
    और प्रेम किया जनता के महानतम उद्देश्य से
    -- हम लड़े इसके लिए --
    हम कह सकते हैं
    कि हम ज़िंदा रहे सचमुच. ... kitni marmik hai kavita..

    ReplyDelete
  2. sabne hee ki hongi aisi baate aapas me. kavita me pahli baar padha. muskurate hue. abhar.

    ReplyDelete
  3. मैं और तुम
    कह सकते हैं कि
    हमने प्रेम किया एक-दूजे से
    और प्रेम किया जनता के महानतम उद्देश्य से
    -- हम लड़े इसके लिए --
    हम कह सकते हैं
    कि हम ज़िंदा रहे सचमुच. ... मरने के समय की यह आश्वस्ति कितनी दुर्लभ और इसीलिए कितनी महत्वपूर्ण है....इसे कहते हैं जीना अपनी शर्तो पर अपनी इच्छा से ! कितना मार्मिक लगभग यह याद दिलाता हुआ - ऐसी करनी कर चलो आप हँसों जग रोया...शायद ऐसे को ही जग रोता होगा!

    ReplyDelete
  4. -हम लड़े इस के लिए-
    हम कह सकते हैं
    हम ज़िंदा रहे सचमुच .

    एक मरते हुए की जिंदा कविता ..........
    खूबसूरत !
    धन्यवाद मनोज जी !

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...