नोबेल विजेता महान पुर्तगाली उपन्यासकार जोसे सारामागो की प्रथम पुण्यतिथि (18 जून) पर उन्हें याद करते हुए...
दूसरा पक्ष : जोसे सारामागो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब हम उन्हें नहीं देख रहे होते होंगे तो चीजें किस तरह की होती होंगी ? यह प्रश्न जो मुझे दिनों दिन कम बेतुका लगता जा रहा है, इसे बचपन में अक्सर मैं अपने आप से पूछा करता था. माता-पिता या शिक्षकों से इसलिए नहीं क्योंकि मुझे लगता था कि वे मेरे भोलेपन (या एक नए विचार के मुताबिक़, मेरी बेवकूफी) पर हसेंगे और मुझे वह इकलौता जवाब देंगे जिससे मैं कभी नहीं संतुष्ट होने वाला : "जब हम उन्हें नहीं देख रहे होते हैं चीजें वैसी ही लगती हैं जैसी कि तब, जब हम उन्हें देख रहे होते हैं." मुझे हमेशा लगता कि चीजें जब अकेली होती हैं तो वे कुछ और होती हैं. बाद में जब मैं तरुणाई की उस अवस्था में पहुँच गया जिसकी विशेषता वह तिरस्कारपूर्ण दंभ होता है जिससे वह अपने उसी बचपन को आंकता है, जिस बचपन से वह निकल कर आया है, मुझे लगा कि मुझे अपनी उस तात्विक चिंता के समाधान का उपाय मिल गया है जिसने अपनी कमसिन उम्र में मुझे परेशान कर रखा था : मैनें सोचा कि यदि आप किसी कमरे में, जिसमें कोई मानवीय उपस्थिति न हो, कोई कैमरा इस तरह से लगा दें जो अपने आप तस्वीरें खींचता रहे तो आप चीजों को उनकी जानकारी में आए बिना देख लेंगे और इस तरह उनके वास्तविक रूप-रंग को जान लेंगे. मैं भूल गया था कि चीजें जितनी दिखती हैं, उससे ज्यादा चतुर होती हैं और वे इतनी आसानी से इस दांव में नहीं आने वालीं : उन्हें ठीक-ठीक पता होता है कि हर कैमरे के भीतर एक इंसानी आँख छिपी होती है... इसके अलावा, अगर कैमरा चालाकी से उस चीज की तस्वीर सामने की तरफ से खींच भी ले, उसका दूसरा पक्ष उस फोटोग्राफी अभिलेख के प्रकाशिक, यांत्रिक, रासायनिक या डिजिटल प्रणाली की पहुँच से ओझल ही रहेगा. और अंतिम क्षण में मानो मुंह चिढ़ाते हुए वह चीज उस दूसरे छिपे हुए पक्ष, अँधेरे की उस जुड़वा बहन की ही तरफ अपना गोपनीय पहलू मोड़ देती होगी. जब हम किसी ऐसे कमरे में प्रवेश करते हैं जो पूरी तरह अन्धकार में डूबा हुआ है और बत्ती जला देते हैं तो अन्धकार गायब हो जाता है. तो यह अजीब नहीं होगा यदि हम अपने आप से पूछें, "अन्धेरा कहाँ चला गया ?" इसका केवल एक ही जवाब हो सकता है : "वह कहीं नहीं गया ; अन्धेरा रोशनी का ही दूसरा पक्ष है, उसका छिपा हुआ पक्ष." यह शर्म की बात है कि किसी ने यह बात मुझे पहले, जब मैं बच्चा था, नहीं बताई. आज मैं अँधेरे और रोशनी के बारे में सबकुछ जानना चाहूंगा, सबकुछ रोशनी और अँधेरे के बारे में.
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अपनी तरह का गद्य... चिंतन की भिन्न प्रणाली की सूचना देने वाला... लेकिन भाई जीभ चटपटा-छटपटा कर रह गई... बहुत कम मात्रा उपलब्ध करायी है आपने, एकदम चुटकी-भर... हालांकि बात अपने आप में अधूरी नहीं रही लेकिन यह भर इच्छा छककर पीने वाला जल है... भरपूर पिला दें कि मन अघा जाये... उपलब्ध कराने के लिए बधाई...
ReplyDeleteअंधेरा रोशनी का छिपा पक्ष !...सुंदर गद्य !
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