फिर से अली अहमद सईद असबार 'अडोनिस' की कविताएँ...
/ . . . एक चिड़िया
अपने पंख फैलाती हुई -- क्या वह डरी हुई है
कि आसमान गिर पड़ेगा या फिर उसके पंखो
के भीतर की हवा कोई किताब हो गई है ?
गरदन
रोके हुए है क्षितिज को
और पंख, शब्द हैं
एक भंवर में तैरते हुए . . . /
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कविगण
कोई ठिकाना नहीं उनके लिए, वे गरम किए रहते हैं
धरती की देंह, अन्तरिक्ष के लिए
बनाते हैं वे उसकी चाभी --
वे नहीं बनाते
कोई कुनबा या कोई घर
अपने मिथकों के लिए, --
वे लिखते हैं उन्हें
जैसे सूरज लिखता है अपना इतिहास, --
बेठिकाना . . .
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बच्चे
बच्चे पढ़ते हैं वर्तमान की किताब, और बोलते हैं,
यह वो समय है जो विकसित होता है
क्षत-विक्षत अंगों के गर्भाशय में.
वे लिखते हैं,
यह वो समय है जिसमें हम देख रहे हैं
कि कैसे धरती को पोसती है मौत,
और कैसे पानी धोखा देता है पानी को.
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(अनुवाद : मनोज पटेल)
एक उच्चस्तरीय बेहतरीन ब्लॉग है |
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