Saturday, June 4, 2011

यूसफ अल-सा'इघ की कविताएँ


1932 में जन्में यूसफ अल-सा'इघ बग़दाद में रहते हैं. उन्होंने बग़दाद विश्विद्यालय से अरबी भाषा में एम ए करने के बाद विभिन्न कालेजों में अध्यापन कार्य किया. कविता के अलावा कहानियां, नाटक, निबंध आदि भी लिखे हैं. अभी तक चौदह किताबें प्रकाशित. उपनिवेशवाद और मध्यपूर्व में पश्चिमी हस्तक्षेप के विरुद्ध लगातार संघर्ष. 











एक इराकी शाम  

एक इराकी शाम में 
युद्धभूमि के कुछ दृश्य :
एक अमनपसंद घर 
दो लड़के 
अपना होमवर्क करते हुए 
एक छोटी बच्ची 
रद्दी कागज़ पर 
अनमनेपन से कुछ अजीब तस्वीरें बनाते हुए 
-- ताजा ख़बरें थोड़ी देर में. 
पूरा घर कान बन जाता है 
दस इराकी आँखें चिपक जाती हैं टेलीविजन के परदे से एक दहशतज़दा खामोशी में. 
अलग-अलग तरह की गंध मिलने लगती हैं आपस में :
युद्ध की गंध 
और गंध ताजी सिंकी रोटी की.
माँ की निगाहें उठतीं हैं दीवार पर लटकी एक तस्वीर की तरफ 
वह बुदबुदाती है 
-- खुदा हिफाज़त करे तुम्हारी 
और खाना बनाना शुरू करती है 
चुपचाप 
और उसके दिमाग में सावधानी से चुने गए 
युद्धभूमि से परे के दृश्य चलने लगते हैं 
उम्मीद के पक्ष में. 
                    :: :: :: 

आदत 

हर रोज घर लौटने पर 
मैं यह घंटी बजाया करता था,
जो अब खामोश है. 
हालांकि मुझे पता है कि घर पर कोई नहीं है 
फिर भी मैं इसे बजा देता हूँ क्योंकि 
सालों से किसी ने नहीं बजाया इस बेचारी, अभागी घंटी को. 
                    :: :: :: 

समय-समय पर 

बहुत घनीभूत था दु:स्वप्न 
आज रात का :
एक खाने की मेज 
एक शराब की बोतल 
तीन गिलास 
और तीन आदमी बिना सर के. 
                    :: :: :: 

(अनुवाद : मनोज पटेल)

4 comments:

  1. शानदार......कविता.....
    अफगानिस्तान ...इराक....
    और जहां कहीं भी युद्ध से झुलसते जिस्म हैं.
    .भूख से अकड़ी हुई हों आंते
    सुना है अब वहां के बच्चे रोटी की दुवा नहीं मांगते.
    अब मांगते हैं वे दुवा हथियारों की....
    बड़े से बड़े हथियार की ...
    क्योंकि उन बच्चों को
    अब सच पता चल गया है..
    ताकत का
    गर हाथ में हो बन्दुक....
    तो चुन सकते हैं अपने लिए वे एक रोटी....
    जिससे उनका जिस्म कुछ पल के लिए जिन्दा रह सके....
    पता नहीं हर रोज पढता तो हूँ यहाँ की आपकी अनुवादित की हुई कवितायेँ.....लेकिन हर रोज कम्मेन्ट्स नहीं कर पता...शायद यही होती है अच्छे कविता की ताकत जो ना चाहने पर भी संवाद करने को मजबूर कर देती है....

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  2. raat ke samay tisree kavita ko padh ke to dar hee gayi... TV serial yaad aaya ..Shhhh koi hai.. :)) baki kavitayen man ke dwand ko bakhoobi parosti hai... Saadar

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  3. realy your blog is best place for modern world poetry in Hindi translation. kavitaon ke hindi anuvad bahut shandar hai.

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