अडोनिस की तीन कविताएँ...
पूरब का पेड़
मैं एक आईना हो गया हूँ.
सारी चीजों के अक्स दिखते हैं मुझमें.
तुम्हारी आग में मैनें बदल दी है पानी और पौधे की रस्म.
बदल दी है आकृति, आवाज़ और पुकार की.
मैं तुम्हें दो रूपों में देखने लगा हूँ,
तुम और मेरी आँखों में तैरता यह मोती.
प्रेमी हो गए हैं हम, पानी और मैं.
मेरा जन्म हुआ पानी के नाम पर
और पानी का जन्म हुआ मेरे भीतर.
हम जुड़वा हो गए हैं.
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आग का पेड़
पत्तियों का एक जत्था
इकट्ठा हुआ एक झरने के आस-पास.
उन्होंने खुरच दी आंसुओं की जमीन
जब पानी को पढ़कर सुनाई
आग की किताब.
मेरे जत्थे ने मेरा इंतज़ार नहीं किया.
वे चले गए,
कोई आग नहीं,
कोई सुराग नहीं.
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उदासी का पेड़
पत्तियाँ गिरती हैं और स्थिर हो जाती हैं लेखन की खाई में,
उदासी का फूल संभाले हुए
बात के
गूँज बन जाने से पहले
अँधेरे की छाल के बीच जोड़ा बनाते हुए.
पत्तियाँ भटकती और लुढ़कती हैं
जंगल दर जंगल
जादुई जमीन की तलाश में,
संभाले हुए उदासी का फूल.
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(अनुवाद : मनोज पटेल)
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