Tuesday, June 28, 2011

अडोनिस : खालिदा के लिए एक आईना


अडोनिस की कविता, 'खालिदा के लिए एक आईना'... 













खालिदा के लिए एक आईना : अडोनिस 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

लहर 

खालिदा 
उदासी की एक डाली 
जिसके चारो तरफ फूटती हैं कोंपलें, 

खालिदा 
          एक सफ़र जो डुबो देता है दिन को 
          आँखों के पानी में,
          एक लहर जिसने मुझे सिखाया कि  
          सितारों की रोशनी 
          बादलों के चेहरे 
          और मिट्टी की सिसकी 
          एक ही फूल हैं. 
                    ~ ~

पानी के नीचे 

हम सोए 
रात के अँधेरे से बुनी चादरों में - रात जो थी भूलने की 
और हमारे भीतर का खून गा रहा था 
झाँझ मजीरे की धुन पर 
पानी के नीचे चमक रहे सूरज के साथ. 
तब रात उम्मीद से हो गई. 
                    ~ ~ 

गुम 

एक बार मैं गुम हो गया था तुम्हारे हाथों में, और मेरे होंठ 
एक किला थे, अज़ब जीत के लिए बेकरार 
तैयार प्रेम में गिरफ्तार होने के लिए. 
तुम आगे बढ़ीं 
तुम्हारी कमर कोई मलिका थी 
और तुम्हारे हाथ सेनापति 
कोई पनाह थीं तुम्हारी आँखें और दोस्त. 
हम जुड़ गए एक-दूसरे से, गुम हो गए, और दाखिल हुए 
आग के एक जंगल में -- मैनें खाका खींचा पहले कदम का 
और तुमने बना दिया रास्ता... 
                    ~ ~

थकान 

पुरानी थकान फूल रही है घर के चारो ओर 
गमले और एक बालकनी है अब उसके पास 
सोने के लिए. वह गायब हो जाती है 
और हमें फ़िक्र होती है उसके सफ़र में उसकी खैरियत की, 
हम दौड़ते हैं मकान का चक्कर लगाते हुए 
पूछते हुए घास के हर तिनके से,
हम दुआ करते हैं, उसकी एक झलक पाकर चिल्लाते हैं :
"क्या, किधर, कैसे?
बह चुकी हैं सारी हवाएं  
सारी डालियाँ झूम चुकीं उनके साथ,
पर तुम नहीं आई."   
                    ~ ~

मौत 

उन लमहों के बाद 
लौट आता है वही वक़्त 
और वही कदम और वही रास्ते दुहराए जाते हैं.
उसके बाद जर्जर हो जाते हैं मकान  
पलंग बुझा देता है अपने ज़माने की आग और मर जाता है 
और मर जाती है तकिया भी. 
                    :: :: :: 

2 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी..

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  2. शब्‍द-शब्‍द कविता... अद्भुत... उपलब्‍ध कराने के लिए आभार...

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