Monday, May 2, 2011

गिओर्गि गस्पदीनव की कविता


1968 में जन्मे बुल्गारिया के प्रसिद्द कवि-कथाकार-नाटककार गिओर्गि गस्पदीनव की कविताओं की पिछली पोस्टों को इस ब्लॉग पर बहुत पसंद किया गया. आज पेश है उनकी एक और कविता. गस्पदीनव अपने उपन्यास नेचुरल नावेल के लिए विश्वविख्यात हैं. वे बुल्गारिया की एक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक और न्यू बुल्गारियन यूनिवर्सिटी, सोफिया में प्रोफ़ेसर भी हैं.  


प्रेम खरगोश : गिओर्गि गस्पदीनव 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी, वह बोली,
और दरवाजे को अधखुला छोड़कर चली गई.
यह एक ख़ास शाम थी हमारे लिए,
खरगोश का स्ट्यु गैस चूल्हे पर धीमे-धीमे पक रहा था,
उसने कुछ प्याज और लहसुन बारीक काट रखे थे 
और गाजर को छोटे गोल टुकड़ों में.
उसने कोट नहीं लिया 
और न ही कोई लिपस्टिक लगाई. मैंने पूछा भी नहीं 
कि वह कहाँ जा रही थी.
ऎसी ही है वह.
उसे वक़्त का कभी कोई अंदाजा ही नहीं रहता,
हमेशा देर हो जाती है उसे ; बस इतना ही 
कहा था उसने उस शाम :
मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी ;
उसने दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था.
छः साल बाद 
मैं उससे गली में मिलता हूँ (अपनी नहीं)
और वह अचानक फिक्रमंद दिखाई पड़ने लगती है, जैसे किसी को अचानक याद आया हो 
कि वह इस्त्री का प्लग निकालना भूल गया था,
या जैसे...
तुमने गैसचूल्हा तो बंद कर दिया था न, वह पूछती है.
अभी तक तो नहीं, मैं जवाब देता हूँ,
बहुत सख्तजान होते हैं ये खरगोश. 
Georgi Gospodinov Poems in Hindi Translation

17 comments:

  1. कविता पढ़कर एक आह निकलती है !

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  2. कमाल है .........क्या स्त्री -पुरुष के सम्बन्ध इतने आकस्मिक और औपचारिक हो गए हैं ,या निकट संभाव्य हैं ? मंटो की कहानी के चौंकाने वाले नाटकीय अंत जैसे समापन में स्थगित होती ,कुछ चिंतित और भीत करती कविता ! मनोज जी को बधाई !

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  3. sachmuch...aah si nikali....manoj ji, aapka ye blog meri rozmarra ki zindagi ka hissa hai....dhanyavaad...

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  4. मानवीय संबंधों को उकेरती एक उत्कृष्ट रचना leena malhotra

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  5. सुन्दर कविता मनोज भाई , आभार .

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  6. बेशक़ अनुवाद बेहतरीन है, खरगोश का पकना एक बहुत असाधारण-सा बिम्ब है, जिसका कोई सीधा लिंक विषय से नहीं मिलता है. ठीक उतना ही असाधारण-सा बिम्ब उसके अचानक फिक्रमंद होने में है. एक अच्छी कविता के लिए शुक्रिया.

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  7. अनुवाद बहुत संवेदनशीलता के साथ किया है। बहुत ही खूबसूरत चित्रण है।

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  8. एक खूबसूरत कविता का बहुत सटीक अनुवाद...मन को कहीं गहरे तक छू गई यह कविता...। बधाई और आभार...।
    प्रियंका

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  9. बहुत अच्छी कविता..

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  10. बहुत अच्छी कविता..

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