Tuesday, June 14, 2011

येहूदा आमिखाई : वक़्त


कथाकार मित्र चन्दन पाण्डेय से अभी हुई अपनी पहली मुलाक़ात में येहूदा आमिखाई का कविता-संग्रह 'Time' हासिल हुआ है. प्रस्तुत है उसी संग्रह से कुछ कविताएँ... 












वक़्त : येहूदा आमिखाई 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

आज शाम, मुझे फिर से याद आ रहे हैं 
वे तमाम दिन 
जो कुर्बान हुए सिर्फ एक रात के प्रेम के लिए. 
मैं सोच रहा हूँ इस बर्बादी और उसके फल के बारे में,
इफरात और आग के बारे में. 
और कैसे तकलीफ के बगैर -- वक़्त. 

मैनें देखे हैं रास्ते 
एक आदमी से दूसरी औरत तक जाते हुए.
ज़िंदगी को मिटता हुआ देखा है 
जैसे बारिश में अक्षर.
एक खाने की मेज देखी है 
जिसपर बची हुई थीं तमाम चीजें
और शराब की एक बोतल जिस पर लिखा था - "द ब्रदर्स,"  
और कैसे तकलीफ के बगैर -- वक़्त.
                    * * * 

मेरे बेटे का जन्म हुआ था अस्सुता अस्पताल में 
और तबसे मैं उसका ध्यान रखता आ रहा हूँ 
जितना भी मैं रख सकता हूँ. 

मेरे बेटे, जब स्कूल छोड़ दें तुम्हें 
और तुम निष्कवच और वेध्य रह जाओ 
जब देखना ज़िंदगी को उधड़ी हुई अपनी सिलन पर से 
और दुनिया को अलग हुआ उसके जोड़ों पर से, मेरे पास आना : 
अब भी मैं बहुत बड़ा विशेषज्ञ हूँ भ्रान्ति और शांति का.  

मैं एक ऐसे शांत एल्बम की तरह हूँ 
जिसकी तस्वीरें फटी हुई हैं 
या बस निकली हुईं अपने में ही 
और फिर भी जिसका वजन कम नहीं होता.
इसी तरह मैं अब भी हूँ वही इंसान 
लगभग बगैर किसी स्मृति के. 

अस्सुता - तेल-अवीव का एक अस्पताल  
                    * * * 

दुखती है दो प्रेमियों की देंह 
सारा दिन घास पर लुढ़कते रहने के बाद. 

उनका, साथ-साथ रात भर जागते पड़े रहना 
दुनिया को तो मोक्ष दिला देता है, 
मगर उन्हें नहीं.

खुले मैदान में जलती, तकलीफ से अंधी हुई आग 
दोहराती है 
सूरज के दिन के काम को. 

बचपन बहुत दूर है.
और युद्ध नजदीक. आमीन. 
                    * * * 

कब्र में पड़े फ़ौजी कहते हैं : वहां ऊपर, तुम 
जो फूल रखते हो हमारे ऊपर,
जैसे फूलों से बनी कोई जीवनदायी चीज,
देखो, हमारी फैली हुई बाहों के बीच  
कितने एक जैसे लगते हैं हमारे चेहरे.
मगर याद रखना हमारे बीच के फर्क को 
और पानी की सतह पर की खुशी को. 
                    * * *  

1 comment:

  1. लगातार युद्ध के माहौल में , मृत्यु के प्रति क्षण एहसास में जीते लोग कितने असहज हो जाते हैं ! प्रभावशाली कवितायें ! आभार मनोज जी !

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