Friday, February 3, 2012

नाजिम हिकमत : पतझड़

नाजिम हिकमत की एक और कविता... 

 
पतझड़ : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे हैं दिन, 
आने वाला है बरसात का मौसम. 
मेरा खुला दरवाज़ा इंतज़ार करता रहा तुम्हारा. 
                    तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई? 

मेरी मेज पर धरी रह गई ब्रेड, नमक, और एक हरी मिर्च. 
तुम्हारा इंतज़ार करते हुए 
अकेला ही पीता रहा मैं 
और रख लिया आधी शराब बचाकर तुम्हारे लिए. 
                    तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई? 

मगर देखो, शहद से भरा हुआ फल, 
पककर डाली पर लगा है अभी.  
अगर और देर हो गई होती तुम्हें 
अपने आप ही गिर गया होता वह जमीन पर. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte, Padhate Padhate  

2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर...
    शुक्रिया.

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  2. ओह.........क्या यह पका हुआ फल मेरे सब्र का है या .........खुद मैं !

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