Tuesday, February 28, 2012

एंतोनियो पोर्चिया : लोग स्मृति हो जाने की उम्मीद में जीते हैं

एंतोनियो पोर्चिया की कुछ और कविताएँ...  

 
आवाजें : एंतोनियो पोर्चिया 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं वह जानता हूँ जो मैनें तुम्हें दिया है. 
वह नहीं जानता जो तुमने पाया है. 
:: :: :: 

मेरे पिता जब गए, 
मेरे बचपन को आधी सदी का तोहफा दे गए. 
:: :: :: 

मनुष्य कहीं नहीं जाता. 
हर चीज मनुष्य तक आती है, जैसे कल. 
:: :: :: 

मैनें शायद ही मिट्टी को छुआ हो 
और मैं उसी से बना हुआ हूँ. 
:: :: :: 

लोग स्मृति हो जाने की उम्मीद में जीते हैं. 
:: :: :: 

5 comments:

  1. गहरे सूत्र .............आभार मनोज जी !

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  2. इन कविताओं को उसकी आत्मा के साथ हम तक पहुँचाने के लिए आभार...
    दिव्य है यह क्षितिज जहां भाषा की सीमाओं से आगे निकल कर भाव सजीव हो उठते हैं!

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  3. बहुत सुंदर कवितायें...

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  4. "लोग स्मृति हो जाने की उम्मीद में जीते हैं."...."मनुष्य कहीं नहीं जाता.
    हर चीज़ मनुष्य तक आती है जैसे कल." लगता ही नहीं कि इतनी गहरी बातें कह जाने के लिए कोई प्रयत्न किया गया हो.

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