एंतोनियो पोर्चिया की कुछ और कविताएँ...
आवाजें : एंतोनियो पोर्चिया
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं वह जानता हूँ जो मैनें तुम्हें दिया है.
वह नहीं जानता जो तुमने पाया है.
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मेरे पिता जब गए,
मेरे बचपन को आधी सदी का तोहफा दे गए.
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मनुष्य कहीं नहीं जाता.
हर चीज मनुष्य तक आती है, जैसे कल.
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मैनें शायद ही मिट्टी को छुआ हो
और मैं उसी से बना हुआ हूँ.
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लोग स्मृति हो जाने की उम्मीद में जीते हैं.
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गहरे सूत्र .............आभार मनोज जी !
ReplyDeleteइन कविताओं को उसकी आत्मा के साथ हम तक पहुँचाने के लिए आभार...
ReplyDeleteदिव्य है यह क्षितिज जहां भाषा की सीमाओं से आगे निकल कर भाव सजीव हो उठते हैं!
बहुत सुंदर कवितायें...
ReplyDelete"लोग स्मृति हो जाने की उम्मीद में जीते हैं."...."मनुष्य कहीं नहीं जाता.
ReplyDeleteहर चीज़ मनुष्य तक आती है जैसे कल." लगता ही नहीं कि इतनी गहरी बातें कह जाने के लिए कोई प्रयत्न किया गया हो.
behtareen..
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