Tuesday, February 14, 2012

निज़ार कब्बानी : मुहब्बत के हाशिए पर

आज निज़ार कब्बानी... 

 

निज़ार कब्बानी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

काफी पियो अपनी 
और ज़रा शांति से सुनो मेरी बात. 
शायद 
फिर कभी साथ-साथ काफी न पिएँ हम, 
शायद फिर कभी मौक़ा न मिले तुमसे बात करने का. 
:: :: :: 

मुझे तुम्हारे बारे में बात नहीं करनी, 
न ही बात करनी है अपने बारे में, 
हम दो शून्य भर हैं मुहब्बत के हाशिए पर, 
पेन्सिल से लिखी दो सतरें सिर्फ. 
मैं बात करूंगा उस चीज के बारे में 
जो ज्यादा खरी है 
तुमसे और मुझसे, 
मैं बात करूंगा 
प्यार के बारे में, 
उस अद्भुत तितली के बारे में 
जो मंडरा रही है हमारे कन्धों पर 
सिर्फ झटक दिए जाने के लिए,  
उस सुनहरी मछली के बारे में 
समुन्दर की गहराईयों से उठती आ रही है जो 
सिर्फ मसले जाने के लिए, 
उस नीले सितारे के बारे में 
जो बढ़ाए हुए है हमारी तरफ दोस्ती का हाथ 
सिर्फ ठुकरा दिए जाने के लिए. 
:: :: :: 

यह अहम नहीं कि 
तुम चली जाओ अपना बैग उठाकर, 
यही करती है हर औरत 
नाराज होने पर. 
अहम सवाल यह नहीं कि 
हताशा में मैं अपनी सिगरेट बुझाऊँ 
सोफे के कुशन पर, 
सभी मर्द यही करते हैं 
नाराज होने पर. 
इतना आसान नहीं है यह सब. 
हमारे बस के बाहर है यह. 
हम दो शून्य भर हैं मुहब्बत के हाशिए पर, 
पेन्सिल से लिखी दो सतरें सिर्फ. 
सबसे अहम थी वह मछली 
जिसे समुन्दर ने उछाला था हमारी तरफ  
और जो पिस गई हमारी उँगलियों के बीच. 
:: :: :: 

7 comments:

  1. 'हमसे' और 'तुमसे' जो ज्यादा सच है उसके बारे में बात करती है कविता... प्यार के बारे में बात करती है कविता...
    ऐसे ऐसे विम्ब गढ़ती है कि सीधे बात संप्रेषित हो जाती है... तितली झटके जाने के लिए ही मंडराती है, दोस्ती का हाथ नहीं थामा जाएगा यह जानते हुए भी नीला सितारा हाथ बढ़ता है... वाह!
    प्रेम के अद्भुत विम्ब गढ़ दिए कवि ने और रूठने नाराज़ होने वाली इकाइयों को हाशिये पर धकेल दिया!
    बहुत बहुत बहुत सुन्दर!

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  2. "मैं बात करूंगा उस चीज़ के बारे में
    जो ज़्यादा खरी है
    तुमसे और मुझसे,
    मैं बात करूंगा
    प्यार के बारे में... " बहुत मोहक कविता है. कवि कितनी सहजता से कह देता है यह सब, लगभग आखिरी मुलाकात के दौरान, जो उतना आसान नहीं हो पाता है कहना क्योंकि आम तौर पर अति-भावुकता ग्रास लेती है सहज-संयत "कहन" को.

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  3. बहुत बहुत ही सुंदर कवितायें...या शायद आपका अनुवाद....भीतर तक असर करती हुई...शुक्रिया मनोज जी...

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  4. बहुत बहुत ही सुंदर कवितायें...और आपका अनुवाद भी...भीतर तक पहुँचती हुई सी...शुक्रिया मनोज जी...

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