Monday, February 6, 2012

फदील सुल्तानी : बुत

फदील सुल्तानी का जन्म १९४८ में ईराक में हुआ था मगर १९७७ से वे लंदन में रह रहे हैं. उनकी कविताएँ तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. अरबी में उन्होंने बहुत अनुवाद भी किए हैं. 

 
बुत : फदील सुल्तानी 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सुबह से शाम तलक 
राहगीर गुजरते रहते हैं तुम्हारे बगल से. 
-- कहाँ जाते हैं वे सब? 
सुबह से शाम तलक 
घास बढ़ती रहती है तुम्हारे नीचे 
और धूल जमती रहती है तुम्हारे कन्धों पर. 
कितना बचे रह जाते हो तुम? 
तुम्हारी उंगलियाँ नजरअंदाज करती हैं राहगीरों को 
और एक साया नजरअंदाज करता है तुम्हें. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel Blog 

2 comments:

  1. बुत.....साया नजरअन्दाज तो कर सकता है पर छोड़ कर नहीं जा सकता.......बहुत गूढ़ कविता......अंदाज अच्छा लगा......!!

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