Saturday, February 11, 2012

राबर्टो जुअर्रोज़ : कविता और कुछ नहीं है एक प्रलाप के सिवा

राबर्टो हुआरोज़ की एक और कविता... 

 

राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कुछ चीजें होती हैं जो इतनी ज्यादा लेती हैं जगह 
कि पसरते हुए अपने आस-पास 
आखिरकार प्रतिस्थापित कर लेती हैं खुद को.  
उन अजीब से जीवों की तरह जो बहते रहते हैं अपनी चमड़ी से 
और सिमट नहीं पाते दुबारा. 

इसी तरह कविता कभी-कभी लिखने नहीं देती मुझे. 
उस समय चपटा पड़ा रहता है लेखन 
जैसे घास किसी भारी जानवर के नीचे. 
और मुमकिन होता है सिर्फ 
घास में कुचले हुए कुछ शब्दों को बटोरना भर. 

मगर हर कविता और कुछ नहीं है एक प्रलाप के सिवा 
तारों के अनंत प्रलाप के नीचे. 
                    :: :: :: 

2 comments:

  1. औंधा पड़ा रहता है लेखन, किसी भारी जानवर के नीचे घास की मानिंद. घास में कुचले हुए कुछ शब्द ही बटोरे जा सकते हों जब.

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  2. सच ही है एक प्रलाप के सिवा और क्या है कविता...
    बहुत सुन्दर!

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