राबर्टो जुअर्रोज़ की एक और कविता...
राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
कोई पाठ लिखना
और अकेला छोड़ देना उसे पन्ने पर.
उसे फिर से पढ़ने के लिए नहीं,
उसे किसी को दिखाने के लिए नहीं,
उसे कहीं भेजने के लिए नहीं,
उसे पाठ के चैन से रहने देने के लिए.
और वहां उसे पाने देना अपने पाठक को,
जैसे सभी पाठ पा जाते हैं अपने पाठकों को.
उस पाठ को भी जो लिखा हुआ है हमारे भीतर
और असंभव सा लगता है कि कोई पढ़ पाएगा उसे.
:: :: ::
Manoj Patel Blog, राबर्तो हुआरोज़
बढ़िया. पाठ और पाठक के बीच सीधा रिश्ता, बिना किसी बिचौलिए के.हमारे भीतर जो पाठ लिखा हुआ है, उसका पढ़ा जाना आसान नहीं है.
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteBadhiya.. Reena Satin
ReplyDelete