Monday, February 6, 2012

यासूनारी कावाबाता की कहानी.

आज नोबेल पुरस्कार विजेता यासूनारी कावाबाता की एक और कहानी... 















एक बच्चे का नजरिया : यासूनारी कावाबाता 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

नवयुवक की माँ दरअसल मोटे दिमाग की थी. 

"मेरी माँ जबरन मेरी शादी कराने की कोशिश कर रही हैं, जबकि मैं किसी और जुबान दे चुकी हूँ." 

ताज़ुको ने कुछ इस तरह से सलाह मांगी थी और ऐसा लगा कि वह औरत समझने ही वाली है कि वह जुबान उसके ही बेटे को दी गई थी. तिस पर भी वह यूं बकबक किए जा रही थी जैसे इससे उसका कोई मतलब ही न हो. "इसको लेकर तुम्हें शंका करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम घर छोड़कर भी उससे शादी कर सकती हो. मैं तुम्हें अपना खुद का तजुर्बा भी बताना चाहूंगी : एक बार ठीक तुम्हारी तरह ही मेरा भी इस समस्या से आमना-सामना हुआ था मगर मैनें गलत रास्ता चुना और अब मैं पिछले तीस सालों से झेल रही हूँ. मेरी तो ज़िंदगी ही बर्बाद हो गई." 

ताज़ुको ने भूल से यह मान लिया कि उसे एक हिमायती मिल गया जिसने उसके प्रेम को मंजूरी प्रदान कर दी है. शर्माते हुए उसने पूछा, "अगर ऐसा है तो क्या आप अपने इचिरो को उसकी मर्जी से शादी करने देंगी?" 
"बिल्कुल, क्यों नहीं?" 

ताज़ुको खुशी-खुशी घर लौटी. नवयुवक भी उसके पीछे-पीछे पहुंचा जो छिप कर उनकी सारी बातें सुन चुका था. नवयुवक ने उसे उसके वादे से आज़ाद करते हुए एक चिट्ठी लिखी. "उसी से शादी कर लो जिसके साथ शादी करने के लिए तुम्हारी माँ कह रही हैं." मगर बेशक, वह इतना और न जोड़ सका : 
तब मेरे जैसा एक अच्छा बच्चा तो तुम पैदा कर ही लोगी. 
                                                  :: :: :: 
Manoj Patel Blog 

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