लैंग्स्टन ह्यूज की एक कविता...
ईश्वर : लैंग्स्टन ह्यूज
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं ईश्वर हूँ --
किसी से भी नहीं है मेरी मित्रता,
इतनी बड़ी दुनिया में
तनहा हूँ, ढोता अपनी पवित्रता.
मेरे नीचे नौजवान प्रेमी
चहलकदमी करते हैं मोहक धरती पर --
मगर कैसे उतरूँ नीचे
मैं तो हूँ ईश्वर.
उठो!
जीवन प्रेम है!
प्रेम ही है जीवन!
ईश्वर -- और तनहा होने की बजाए
बेहतर है होना इंसान.
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Manoj Patel Blog

sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteamazzing...
ReplyDeleteइंसान होना इतना श्रेष्ठ है कि ईश्वर भी तरसता है इस अवतार के लिए!
ReplyDeleteकवि ने ईश्वर का हृदय पढ़ा और आपने हम तक यह सुन्दर कविता पहुंचाई...
आभार!
सही है...
ReplyDeleteसही तो है....इंसान होना बेहतर है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteतनहाई से ईश्वर भी घबराता है......क्या बात है ?......बहुत सुंदर......!!
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..