Wednesday, February 8, 2012

लैंग्स्टन ह्यूज : ईश्वर

लैंग्स्टन ह्यूज की एक कविता... 

 
ईश्वर : लैंग्स्टन ह्यूज 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं ईश्वर हूँ -- 
किसी से भी नहीं है मेरी मित्रता,  
इतनी बड़ी दुनिया में 
तनहा हूँ, ढोता अपनी पवित्रता. 

मेरे नीचे नौजवान प्रेमी 
चहलकदमी करते हैं मोहक धरती पर -- 
मगर कैसे उतरूँ नीचे 
मैं तो हूँ ईश्वर.

उठो!
जीवन प्रेम है!
प्रेम ही है जीवन! 
ईश्वर -- और तनहा होने की बजाए 
बेहतर है होना इंसान.
               :: :: :: 
Manoj Patel Blog 

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  2. इंसान होना इतना श्रेष्ठ है कि ईश्वर भी तरसता है इस अवतार के लिए!
    कवि ने ईश्वर का हृदय पढ़ा और आपने हम तक यह सुन्दर कविता पहुंचाई...
    आभार!

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  3. सही तो है....इंसान होना बेहतर है

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  4. तनहाई से ईश्वर भी घबराता है......क्या बात है ?......बहुत सुंदर......!!

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  5. वाह...

    बेहतरीन रचना..

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