एंतोनियो पोर्चिया की कविताएँ...
आवाजें : एंतोनियो पोर्चिया
(अनुवाद : मनोज पटेल)
किसी को मैनें ऐसा नहीं पाया जिसके जैसा मैं होना चाहूँ. और मैं उसी तरह से रह गया :
किसी की तरह नहीं.
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उन्होंने तुम्हें धोखा देना बंद कर दिया है, प्यार करना नहीं.
और तुम्हें लगता है कि उन्होंने तुम्हें प्यार करना बंद कर दिया है.
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प्रकाश की एक किरण ने तुम्हारा नाम मिटा दिया.
अब मुझे यह नहीं पता कि तुम कौन हो.
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जब तुम्हारा कष्ट मेरे कष्ट से थोड़ा ज्यादा होता है,
तो मुझे लगता है कि मैं थोड़ा क्रूर हूँ.
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अंतोनियो पोर्चिया
कुछ एक पंक्तियों में कितना कुछ कह देते हैं कवि!
ReplyDeleteबहुत खूब.....................छोटी, मगर गहरे अर्थ से भरी हुई क्षणिकाएँ ! सुन्दर अनुवाद !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसभी एक से बढ़ कर एक...
कमाल की अभिव्यक्ति...
शुक्रिया..
दो-दो पंक्य्तियों में जो गहरे अर्थ समाये हैं इन कविताओं में, वे कवि के जीवन-अनुभवों की सघनता का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं.
ReplyDeleteWaah - Reena Satin
ReplyDeleteएंतोनियो पोर्चिया की कविताएं पढ़कर लगा कि कितनी स्पषटता है उनके चिंतन में। अपनें अंदर मौजूद गंभीरता और सहजता से हैरान करती हुई रचनाएं ।
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