Tuesday, February 14, 2012

जिबिग्न्यु हर्बर्ट : प्यार करता हूँ तुमसे

जिबिग्न्यु हर्बर्ट की एक और कविता... 










वाकया : जिबिग्न्यु हर्बर्ट 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हम चल रहे हैं समुन्दर के किनारे 
मजबूती से थामे अपने हाथों में 
एक आदिम बातचीत के दो सिरे 
-- क्या तुम मुझसे प्यार करते हो?
-- प्यार करता हूँ तुमसे 

भौहें सिकोड़े 
अपना सारा ज्ञान खंगाल डालता हूँ मैं 
दोनों टेस्टामेंटों का   
ज्योतिषियों पैगम्बरों  
बागों के दार्शनिकों 
और आश्रम में रहने वाले दार्शनिकों का 

और कुछ ऐसा ध्वनित होता है : 
-- रोओ मत 
-- बहादुर बनो 
-- देखो सबलोग कैसे 

अपने होंठ सिकोड़कर बोलती हो तुम 
-- तुम्हें तो कोई पुजारी होना चाहिए था 
और चली जाती हो झल्लाकर 
कोई प्यार नहीं करता पुजारियों से 

          क्या कहूं मैं 
          इस छोटे से मृत सागर के किनारे पर 

          धीरे-धीरे पानी भर जाता है 
          उन पैरों के निशान में जो अब जा चुके हैं 
                    :: :: :: 
जिब्ग्न्यू हरबर्ट, ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त 

4 comments:

  1. "क्या कहूं मैं
    इस छोटे से मृत सागर के किनारे

    धीरे धीरे पानी भर जाता है
    उन पैरों के निशानों में जो अब जा चुके हैं." एक आदिम बातचीत का दूसरा सिरा.

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  2. कमाल की शायरी है, लफ्ज़-बा-लफ्ज़ बेहतरीन!

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  3. Badhiya.. - Reena Satin

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