प्रस्तुत है जर्मन कवियत्री मोनिका रिंक की एक कविता. १९६९ में जन्मी मोनिका बर्लिन में रहती हैं. अब तक उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. अंग्रेजी में अनूदित उनकी कविताएँ 'टू रिफ्रेन फ्राम एम्ब्रेसिंग' नाम से अभी हाल में प्रकाशित हुई हैं.
तालाब : मोनिका रिंक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वह कहता है: दुख एक तालाब है.
मैं कहती हूँ: हाँ, दुख एक तालाब है.
क्योंकि दुख पड़ा रहता है एक गड्ढे में
नष्ट होता और दागा जाता हुआ मछलियों से.
वह कहता है: और गुनाह एक तालाब है.
मैं कहती हूँ: हाँ, गुनाह भी एक तालाब है.
क्योंकि एक कीचड़दार बिल से गुजरता है गुनाह
मेरी फैली हुई अकड़ी बाहों के
सपाट गड्ढे तक पहुँचते हुए.
वह कहता है: धोखा एक तालाब है.
मैं कहती हूँ: हाँ, धोखा भी एक तालाब है.
क्योंकि गर्मियों की रातों में
तुम पिकनिक मना सकते हो उसके किनारे
और हमेशा कुछ न कुछ छूट ही जाता है वहां.
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वाह!
ReplyDeleteबहुत असरदार कविता ,सुन्दर अनुवाद ! बधाई मनोज जी !
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