Friday, February 24, 2012

मोनिका रिंक : तालाब

प्रस्तुत है जर्मन कवियत्री मोनिका रिंक की एक कविता. १९६९ में जन्मी मोनिका बर्लिन में रहती हैं. अब तक उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. अंग्रेजी में अनूदित उनकी कविताएँ 'टू रिफ्रेन फ्राम एम्ब्रेसिंग' नाम से अभी हाल में प्रकाशित हुई हैं.  

monica-rinck
 











तालाब : मोनिका रिंक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वह कहता है: दुख एक तालाब है. 
मैं कहती हूँ: हाँ, दुख एक तालाब है. 
क्योंकि दुख पड़ा रहता है एक गड्ढे में 
नष्ट होता और दागा जाता हुआ मछलियों से.  
वह कहता है: और गुनाह एक तालाब है. 
मैं कहती हूँ: हाँ, गुनाह भी एक तालाब है. 
क्योंकि एक कीचड़दार बिल से गुजरता है गुनाह 
मेरी फैली हुई अकड़ी बाहों के 
सपाट गड्ढे तक पहुँचते हुए.   
वह कहता है: धोखा एक तालाब है. 
मैं कहती हूँ: हाँ, धोखा भी एक तालाब है. 
क्योंकि गर्मियों की रातों में 
तुम पिकनिक मना सकते हो उसके किनारे 
और हमेशा कुछ न कुछ छूट ही जाता है वहां. 
                    :: :: :: 

2 comments:

  1. बहुत असरदार कविता ,सुन्दर अनुवाद ! बधाई मनोज जी !

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