राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता...
राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
क्या छिपा होता है रंगों के पीछे?
उनके पीछे रंग और प्रकाश की अनुपस्थिति होती है क्या?
या फिर शायद कोई और अज्ञात रंग?
या वहां होती होगी सिर्फ
चीजों की एक शुरूआत जिनके बारे में हम जानते नहीं?
क्योंकि हर रंग छिपाता है कुछ न कुछ,
और उसे कपड़े पहनाता है आँख के लिए,
ढालता है न गाए जाने वाले एक गीत में,
अँधेरे में एक आश्वस्ति के तौर पर.
लेकिन यदि कोई और रंग होता है उसके पीछे,
तो क्या एक आँख भी होती होगी उसे देखने के लिए?
या रंगों के पीछे कुछ नहीं होता एक आँख के सिवाय
जो हमें देखा करती है उनके माध्यम से?
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राबर्तो हुअर्रोज़
बहुत अच्छा प्रयास है, कविता को प्रस्तुत करने का
ReplyDeletebahut sundar anuvaad....
ReplyDeletebhavpoorn aur zindagi se juda hua bhi...
एक रहस्य है यह जिसे तह दर तह उकेरती है कविता....
ReplyDeleteजीवन एक रहस्य है... सुंदर कविता !
ReplyDeleteऐसी कविताएँ मुझे ज़्यादा पसंद आती हैं....बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली...शुक्रिया मनोज जी...
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