Monday, February 27, 2012

आन्द्रास गेरेविच की दो कविताएँ

समलैंगिकता पर सरकार के बदलते रुख के बीच आज प्रस्तुत हैं आन्द्रास गेरेविच की दो कविताएँ. आन्द्रास गेरेविच का जन्म बुडापेस्ट में १९७६ में हुआ था. बुडापेस्ट से ही अंग्रेजी साहित्य में स्नातक डिग्री लेने के बाद अमेरिका से रचनात्मक लेखन एवं ब्रिटेन से पटकथा लेखन की डिग्रियां हासिल कीं. उनका तीसरा कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य है. वे इस समय युवा हंगरी लेखकों के संगठन के अध्यक्ष हैं व् हंगरी के साहित्यिक मासिक 'कालिग्राम' के कविता सम्पादक होने के साथ ही लंदन से प्रकाशित होने वाली साहित्य एवं कला की पत्रिका 'क्रोमा' के भी सम्पादक हैं. बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के लिए वे एक रेडियो कार्यक्रम 'पोएट्री बाई पोस्ट' बनाते हैं. 

 
आन्द्रास गेरेविच की दो कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कहानियों की किताब में

कहानियों की किताब में नन्हा शहजादा 
अंत-पंत पा ही जाता था नन्ही शहजादी 
या कभी-कभार एक दरजिन को, 
ठीक दादा और दादी, मम्मी और पापा 
रोमियो और जूलियट की तरह.   

सालों बाद मैं समझ पाया 
कि कभी-कभी नन्हे शहजादे को 
प्यार हो जाता है किसी और लड़के से, 
या मेरे एक अंकल 
कभी नहीं देखे गए किसी स्त्री के साथ. 

मुझे तैयार नहीं किया गया था अपनी ज़िंदगी के लिए. 
बिल्कुल सांता क्लाज की तरह है यह -- 
खुशी से बुनी हुई हताशा. एक कहानी. 
और जैसे होता है छुपमछुपाई के खेल में, 
जीतता है सबसे तगड़ा ही, 
तब भी, जब वह करता है बेईमानी.
                    :: :: :: 

एक तोहफा 

उस शाम हम लोगों ने नहीं बोला एक भी शब्द. 
मैनें जल्दी ही बुझा दी बत्ती उसकी आँखों से बचने के लिए. 
वह बिस्तर पर सोया जबकि मैं एक दरी पर, 
ताका किया छत को, उलटते-पुलटते, करवट बदलते, 
बाल्कनी पर गया सिगरेट पीने की खातिर 
और सुनता रहा उसकी चिरपरिचित भारी साँसें. 
जब मेरी आँख खुली, खाली था बिस्तर, 
कम्बल मुड़ा-तुड़ा पड़ा था फर्श पर 
और कुर्सी पर से गायब थे उसके कपड़े. 
आलमारी में से वह किताबें ले गया था अपनी, 
और बाथरूम से अपनी फेसक्रीम भी. 
मगर उसके डीओडरेंट की हल्की सी महक अब भी थी मौजूद, 
तौलिया अभी तक गीला था और थोड़ा गर्म, 
और किचन में एक काफी इंतज़ार कर रही थी मेरा.  
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. कुछ नया नये तरीके का पढना हमेशा अच्छा लगता है . इन दोनों कविताओ ने मुझे रितोपर्नो घोस कि एक फिल्म याद दिला दी 'Memories in March'. मिनिस्ट्री में बैठे लोगो को भी ये फिल्म देखनी चाहिए , ये कविता भी पढ़नी चाहिए . फिर वे एसे अनाप सनाप नही बोलेंगे .

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  2. स्वाति अर्जुनFebruary 27, 2012 at 9:31 AM

    मंत्रालय और सरकारें जिस प्रेम की व्याख्या करने में असमर्थ हो रही हैं.....उसे कवि ने बड़े ही गरीमापूर्ण तरीके से समझा दिया है. बहुत सरल और सुघड़ कविता.

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  3. मंत्रालय और सरकारें जिस प्रेम की जिस भावना को समझ पाने में असमर्थ हैं..उसे कवि ने बहुत ही सरल और गरीमापूर्ण शब्दों में समझा दिया है.

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  4. मंत्रालय और सरकारें जिस भाव को समझ पाने में आज भी असमर्थ हैं उसे कवि ने बड़े ही सरल और गरीमापूर्ण शब्दों में व्यक्त किया है.

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  5. दोनों कविताएं अच्छी हैं, एक अलग भाव भूमि पर.दोनों की अंतिम कुछेक पंक्तियां उल्लेखनीय हैं.

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  6. मानव जगत की संरचना और मन के कई आधार हैं... संस्कारगत भी... व्यवहारगत भी... और कवि यह बखूबी जानता है... सरलता से अपनी बात प्रेषित करती कवितायेँ!
    आभार!

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