Wednesday, February 22, 2012

ज़िंदगी एक पेड़ की तस्वीर बनाती है

आज प्रस्तुत है राबर्तो हुआरोज़ की एक मशहूर कविता...  

 
राबर्तो हुआरोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

ज़िंदगी एक पेड़ की तस्वीर बनाती है 
मौत बनाती है एक और पेड़ की तस्वीर. 
ज़िंदगी एक घोंसला बनाती है 
और मौत भी कर लेती है उसकी नक़ल. 
घोंसले में रहने के लिए 
ज़िंदगी एक चिड़िया बनाती है 
और मौत भी फ़ौरन 
बना डालती है एक दूसरी चिड़िया. 

एक हाथ जिसने कुछ भी नहीं बनाया 
घूमता रहता है तस्वीरों के बीच 
और कभी-कभी इधर उधर कर देता है किसी एक को.  
मसलन : 
ज़िंदगी के बनाए हुए पेड़ पर 
ज़िंदगी की चिड़िया 
रहने लगती है मौत के घोंसले में. 

कभी-कभी 
कुछ भी न बनाने वाला हाथ 
मिटा देता है सिलसिले की एक तस्वीर को. 
मसलन : 
मौत के पेड़ पर होता है 
मौत का घोंसला 
मगर उसमें कोई चिड़िया नहीं होती. 

और कभी-कभी तो 
कुछ भी न बनाने वाला हाथ 
खुद ही बदल जाता है 
एक चिड़िया के आकार की, 
एक पेड़ के आकार की, 
एक घोंसले के आकार की, 
एक अतिरिक्त तस्वीर में. 
और तब, केवल तब 
न तो कुछ गायब होता है, न ही कुछ छूटा होता है. 
मसलन : 
मौत के पेड़ पर 
दो चिड़िया रहती हैं 
ज़िंदगी के घोंसले में. 

या ज़िंदगी के पेड़ पर 
होते हैं दो घोंसले 
और उनमें रहती है केवल एक चिड़िया.  

या एक अकेली चिड़िया 
रहती है एक घोंसले में 
ज़िंदगी के पेड़ पर 
और मौत के पेड़ पर. 
               :: :: :: 

2 comments:

  1. अजीबोगरीब सी कविता...

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  2. इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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