राबर्टो जुअर्रोज़ की एक और कविता...
राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
हमने भी धोखा दिया है पानी को.
इसके लिए तो नहीं बांटी जाती बारिश,
इसके लिए तो नहीं बहती नदी,
इसके लिए तो नहीं ठहरता तालाब,
इसके लिए तो नहीं है उपस्थिति समुद्र की.
हमसे फिर खो गया है सन्देश,
खो गए हैं पानी की भाषा के
उनमुक्त स्वर,
उसकी मौन किन्तु सुस्पष्ट पारदर्शिता.
पता तक नहीं लगा पाए हम
पानी की पारदर्शिता को पीने का तरीका.
किसी चीज को पीना उसे समझना भी होता है.
और पारदर्शिता को समझना शुरूआत होती है
अदृश्य को समझने की.
:: :: ::
Manoj Patel, Padhate Padhate
पानी से पानी तेरा रंग कैसा ... सभी देशों में पानी का अपना महत्व है ... कवी ने बड़ी बारीकी से सामाज द्वारा पानी के ... संरक्षण पर बल दिया है
ReplyDeleteपारदर्शिता को समझना...
ReplyDeleteपानी की पारदर्शिता को पी जाना और अनंत को समझने की ओर कदम बढ़ाना...
सभी बड़ी बातें एक छोटी सारगर्भित कविता में!
वाह!
आभार प्रस्तुति के लिए!
"हमसे फिर खो गया है संदेश,
ReplyDeleteखो गए हैं पानी की भाषा के
उन्मुक्त स्वर,
उसकी मौन किंतु सुस्पष्ट पारदर्शिता..."
इतने कम शब्दों में इतनी सारगर्भित कविता ! वाह !
...और पारदर्शिता को समझना शुरूआत होती है
ReplyDeleteअदृश्य को समझने की !
बहुत अच्छी बात कहती है कविता ! सुन्दर अनुवाद !
paani ki tarah utar gayi kavita de gayi sukun....
ReplyDelete